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किसी व्यक्ति को देश में कहीं भी निवास करने के उसके मौलिक अधिकार से तुच्छ आधार पर वंचित नहीं किया जा सकता - सुप्रीम कोर्ट

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हाल ही में, जस्टिस इंदिरा बनर्जी और वी. रामसुब्रमण्यम की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि किसी व्यक्ति को देश में कहीं भी रहने के उसके मौलिक अधिकार से बेबुनियाद आधार पर वंचित नहीं किया जा सकता। बेंच ने एक पत्रकार के खिलाफ पारित निर्वासन आदेश को रद्द करते हुए ये टिप्पणियां कीं। शीर्ष अदालत ने आगे कहा कि निर्वासन आदेश का कठोर पारित होना केवल असाधारण मामलों में ही किया जा सकता है जब कानून को खतरा हो और जनता को परेशानी हो।

पृष्ठभूमि

अमरावती शहर के पुलिस उपायुक्त (जोन-1) ने महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम, 1951 की धारा 56(1)(ए)(बी) के तहत पत्रकार रहमत खान के खिलाफ निष्कासन आदेश पारित किया, जिसमें उन्हें एक वर्ष की अवधि के लिए अमरावती शहर या ग्रामीण जिले में प्रवेश नहीं करने का निर्देश दिया गया।

रहमत खान ने तर्क दिया कि उन्हें मदरसों के संचालन में अनियमितताओं के बारे में जानकारी मिली थी, जैसे कि जिले में मदरसों को वितरित किए गए सार्वजनिक धन का दुरुपयोग। इसलिए, उन्होंने सरकार के समक्ष शिकायत दर्ज कराई। उन्होंने 2017 में कलेक्टर और पुलिस से मामले की जांच करने का अनुरोध भी किया। उन्होंने इसी मुद्दे को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका भी दायर की। इसके बाद, 3 अप्रैल, 2018 को सहायक पुलिस आयुक्त की ओर से खान को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया, जिसमें उन्हें निर्वासन कार्यवाही शुरू करने की सूचना दी गई। इसके अलावा, सरकारी अधिकारियों और संबंधित लोगों द्वारा अपीलकर्ता के खिलाफ एक प्राथमिकी भी दर्ज कराई गई थी।

आयोजित

न्यायालय ने कहा कि यह स्पष्ट है कि एफआईआर और निर्वासन आदेश अपीलकर्ता द्वारा दर्ज की गई शिकायतों का परिणाम था। और एफआईआर से स्पष्ट संकेत मिलता है कि यह अपीलकर्ता की आवाज दबाने और उसे सबक सिखाने के लिए उसके खिलाफ दर्ज की गई थी।

शिकायतकर्ताओं ने तर्क दिया कि अपीलकर्ता ने अवैध गतिविधियों का खुलासा करने के नाम पर पैसे ऐंठे। यह मानते हुए भी कि उक्त आरोप सत्य हैं, फिर भी निर्वासन का आदेश अनुचित था। कोई भी व्यक्ति अपर्याप्त आधार पर किसी व्यक्ति को देश भर में स्वतंत्र रूप से घूमने के उसके मौलिक अधिकार से वंचित नहीं कर सकता।


लेखक: पपीहा घोषाल