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बेटा अपने बुजुर्ग पिता के भरण-पोषण की जिम्मेदारी से बच नहीं सकता - बॉम्बे हाईकोर्ट
केस: जगन्नाथ बेडके बनाम हरिभाऊ बेडके
औरंगाबाद स्थित बॉम्बे उच्च न्यायालय के अनुसार, एक पुत्र अपने वृद्ध पिता के भरण-पोषण की जिम्मेदारी से बच नहीं सकता है, न ही वह भरण-पोषण के बदले पिता को अपने साथ रहने के लिए मजबूर कर सकता है।
पृष्ठभूमि
न्यायमूर्ति विभा कंकनवाड़ी की एकल पीठ एक पिता द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी गई थी। सत्र न्यायाधीश ने शेवगांव के प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा पारित भरण-पोषण आदेश को खारिज कर दिया।
हाईकोर्ट के समक्ष बेटे ने दावा किया कि उसके माता-पिता के बीच मतभेद के कारण पिता अलग रह रहे हैं, जबकि उसकी मां उसके साथ रह रही है। हालांकि, जज ने कहा कि इन मुद्दों पर यहां विचार करने की आवश्यकता नहीं है।
आयोजित
जज ने आगे कहा कि 73 वर्षीय पिता 20 रुपये प्रतिदिन कमाने वाले मजदूर के रूप में काम कर रहे थे। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि "निचली अदालत द्वारा अपनाया गया दृष्टिकोण बहुत तकनीकी प्रतीत होता है, और जब याचिकाओं की बात आती है तो यह बहुत ही कमज़ोर लगता है।" सीआरपीसी की धारा 125 के अनुसार, न्यायालय अपने दृष्टिकोण में इतने तकनीकी नहीं हो सकते। यह प्रावधान किसी व्यक्ति को तत्काल वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए किया गया है ताकि वह जीवित रह सके। इस न्यायालय की संवैधानिक शक्तियों का उपयोग ऐसे मामलों में किया जाना चाहिए जहां ऐसी तकनीकी उन्होंने कहा, "अब 73 से 75 वर्ष की उम्र में पिता को कमाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।"
इसे देखते हुए, न्यायालय ने बेटे को अपने पिता को प्रति माह 3,000 रुपये देने का आदेश दिया।