समाचार
दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी किया, क्योंकि बीएसएफ के एक पूर्व कांस्टेबल को एचआईवी पॉजिटिव पाए जाने के बाद छुट्टी दे दी गई थी।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक पूर्व बीएसएफ कांस्टेबल की याचिका पर सुनवाई के बाद केंद्र सरकार और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) को नोटिस जारी किया है। कांस्टेबल ने आरोप लगाया है कि एचआईवी पॉजिटिव पाए जाने के बाद उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए अधिवक्ता अनुज अग्रवाल ने कहा कि याचिकाकर्ता अप्रैल 2017 में बल में शामिल हुआ था। तीन महीने की ट्रेनिंग के बाद उसे गुड़गांव के भोंडसी में स्थानांतरित कर दिया गया था। उसी महीने उसकी मेडिकल जांच की गई जिसमें पता चला कि उसे एचआईवी और एब्डोमिनल कोच (टीबी का एक प्रकार) हो गया है। उसने बीएसएफ अस्पताल नई दिल्ली में छह महीने का इलाज पूरा किया और 31 जनवरी 2018 को उसे छुट्टी दे दी गई।
दिसंबर 2018 में याचिकाकर्ता को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। कारण बताओ नोटिस के जवाब में उन्होंने तर्क दिया कि उनके पास आय का कोई अन्य स्रोत नहीं है और उनकी आजीविका नौकरी पर निर्भर है। 2019 में उन्हें शारीरिक रूप से अयोग्य होने के आधार पर नौकरी से निकाल दिया गया था।
उन्होंने आदेश के खिलाफ विभागीय अपील दायर की, हालांकि उसे खारिज कर दिया गया।
याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट के समक्ष तर्क दिया कि उसे स्वतंत्र स्वास्थ्य प्रदाता के मूल्यांकन की प्रति उपलब्ध नहीं कराई गई, जिसमें यह घोषित किया गया था कि याचिकाकर्ता अपना कर्तव्य निभाने के लिए अयोग्य है। याचिकाकर्ता को अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए वैकल्पिक उचित आवास/नौकरी भी उपलब्ध नहीं कराई गई, जो कि एचआईवी अधिनियम, 2017 की धारा 3 के तहत आवश्यक है। आगे तर्क दिया गया कि हालांकि वह एचआईवी पॉजिटिव है, लेकिन वह अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए फिट है क्योंकि वह लक्षणहीन और स्वस्थ है।
याचिका में यह भी चुनौती दी गई
सीमा सुरक्षा बल नियम 1969 के नियम 18 को असंवैधानिक घोषित किया गया;
संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 311 का उल्लंघन;
एचआईवी अधिनियम 2017 की धारा 3.
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि अवैध बर्खास्तगी के बाद वह कोई भी रोजगार हासिल नहीं कर पाया है, इसलिए उसे सेवा में बहाल किया जाना चाहिए।
लेखक: पपीहा घोषाल