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समान काम के लिए समान वेतन मौलिक अधिकार नहीं बल्कि संवैधानिक लक्ष्य है - बॉम्बे हाईकोर्ट

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बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने मिनिमम कॉम्पिटेंसी वोकेशनल कोर्स के प्रशिक्षक की कई याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि "समान काम के लिए समान वेतन एक मौलिक अधिकार नहीं बल्कि एक संवैधानिक लक्ष्य है"। पीठ एमसीवीसी प्रशिक्षकों की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समान काम के लिए समान वेतन के सिद्धांत पर एमसीवीसी में पूर्णकालिक शिक्षकों के बराबर वेतनमान का दावा किया गया था।

जस्टिस एसबी शुक्रे और आरबी देव की बेंच ने कहा कि वेतनमान में समानता का अधिकार नौकरी की प्रकृति, निभाई गई ड्यूटी, योग्यता और अनुभव जैसे कई कारकों पर निर्भर करता है। किसी पद का पदनाम एकमात्र आधार नहीं हो सकता।

याचिकाकर्ता एमसीवीसी के प्रशिक्षक हैं, जो महाराष्ट्र के कुछ कॉलेजों में 11वीं और 12वीं कक्षा पढ़ाते हैं। उन्होंने दावा किया कि उनका काम पूर्णकालिक शिक्षक के समान प्रकृति का है जो समान स्तर की डिग्री के पाठ्यक्रम पढ़ाते हैं। महाराष्ट्र सरकार ने तर्क दिया कि पूर्णकालिक कर्मचारी का अनुभव, योग्यता, काम की प्रकृति और भर्ती अलग-अलग होती है और उनकी तुलना नहीं की जा सकती।

याचिका खारिज करते हुए पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि नीति तर्कहीन या दुर्भावनापूर्ण नहीं है। न्यायालय को अनिश्चित आधार पर आगे बढ़ने से बचना चाहिए।


लेखक: पपीहा घोषाल