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वित्तीय लेनदारों ने दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष आईबीसी 2016 में खामियों की ओर ध्यान दिलाया

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94 वित्तीय लेनदारों ने दिवाला एवं दिवालियापन संहिता 2016 में खामियों के संबंध में अपनी शिकायतें रखीं। उन्होंने दलील दी कि यह अधिनियम उन वित्तीय लेनदारों के लिए धन की वसूली की अनुमति नहीं देता है, जिन्हें कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया से गुजर रही कंपनियों द्वारा धोखा दिया गया है।

सीएंडसी कंस्ट्रक्शन लिमिटेड और मेसर्स सीएंडसी टावर्स लिमिटेड के खिलाफ क्रमशः एनसीएलटी दिल्ली और एनसीएलटी चंडीगढ़ द्वारा 2019 में दिवालियापन की कार्यवाही शुरू की गई थी। याचिकाकर्ता मेसर्स कर्व्या स्टॉक ब्रोकिंग लिमिटेड के ग्राहक थे। उन्हें कर्व्या रियल्टी और सीएंडसी टावर्स द्वारा पोंजी स्कीम में निवेश करने का लालच दिया गया था। यह इस तथ्य का खुलासा किए बिना किया गया था कि सीएंडसी टावर्स को पहले से ही गैर-निष्पादित परिसंपत्ति घोषित किया गया था। सीएंडसी टावर्स ने न केवल धन की धोखाधड़ी की, बल्कि मेसर्स सीएंडसी कंस्ट्रक्शन को धन भी हस्तांतरित किया।

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि आईबीसी की धारा 43 और 45 के साथ धारा 66 में कमियां दिखाई देती हैं। यह कमी धारा 14 के तहत स्थगन के साथ मिलकर याचिकाकर्ता को वसूली के लिए उचित कानूनी उपायों का लाभ उठाने से रोकती है। याचिकाकर्ताओं ने बताया कि समाधान पेशेवर ने पहले ही समाधान योजना की मंजूरी मांगी है। यदि एनसीएलटी योजना को मंजूरी देता है, तो वे इससे बंधे होंगे, भले ही उन्होंने सीआईआरपी में भाग लिया हो या नहीं।

इसलिए याचिकाकर्ताओं ने अनुच्छेद 226 के तहत दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।

याचिकाकर्ताओं ने उच्च न्यायालय से उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा करने और यह घोषित करने का आग्रह किया कि आईबीसी 2016 पोंजी योजना की परिकल्पना नहीं करता है और धोखाधड़ी करने वाले लेनदारों को निवारण प्रदान नहीं करता है। इसे देखते हुए, न्यायालय ने एक नोटिस जारी किया और मामले की अगली सुनवाई 26 अक्टूबर, 2021 को तय की।


लेखक: पपीहा घोषाल