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उच्च न्यायालय को अनुच्छेद 226 के तहत मध्यस्थीय विवाद पर तब तक विचार नहीं करना चाहिए जब तक कि इसमें सार्वजनिक हित का मुद्दा शामिल न हो।
6 अप्रैल 2021
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि हाईकोर्ट को अनुच्छेद 226 के तहत किसी मध्यस्थता विवाद पर तब तक विचार नहीं करना चाहिए जब तक कि उसमें जनहित का कोई बुनियादी मुद्दा शामिल न हो। सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी हरियाणा मास रैपिड ट्रांसपोर्टेशन कॉरपोरेशन (एचएसवीपी) द्वारा दायर एक रिट में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश के खिलाफ रैपिड मेट्रोरेल गुड़गांव लिमिटेड (आरएमजीएल) की अपील पर सुनवाई करते हुए की।
पीठ ने कहा कि यद्यपि इसमें मध्यस्थता का प्रावधान था, फिर भी उच्च न्यायालय ने रिट याचिका पर विचार किया।
फ़ैसला
न्यायालय ने आगे कहा कि उच्च न्यायालय का हस्तक्षेप उचित था, क्योंकि इसके बिना मेट्रो में अव्यवस्था फैल सकती थी। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय को मध्यस्थता विवादों पर विचार नहीं करना चाहिए, क्योंकि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम के तहत विभिन्न उपचार मौजूद हैं।
न्यायालय ने निर्देश दिया कि आरएमजीएल और एचएसवीपी मध्यस्थता खंड के तहत अपने उपायों को आगे बढ़ा सकते हैं।
लेखक: पपीहा घोषाल