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विवरण का अभाव एफआईआर को रद्द करने के बराबर नहीं हो सकता

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11 अप्रैल 2021

बॉम्बे हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत जयश्री (पत्नी) द्वारा दर्ज एफआईआर को रद्द करने के मामले की सुनवाई की, जिस पर अपने पति को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप है।

तथ्य

2019 में जयश्री के जीजा ने याचिकाकर्ता/पत्नी (जयश्री) के खिलाफ आईपीसी की धारा 306 के तहत अपने पति को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में एफआईआर दर्ज कराई थी। जयश्री के जीजा ने कहा कि यह उनकी दूसरी शादी थी और रतन के पहली शादी से दो बच्चे थे। उन्होंने आगे कहा कि याचिकाकर्ता अक्सर छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा करता था। फरवरी 2019 में रतन को नीम के पेड़ से लटका हुआ पाया गया; दो सुसाइड नोट मिले, जिससे पता चला कि जयश्री द्वारा अक्सर किए जाने वाले झगड़ों के कारण रतन ने आत्महत्या कर ली।

बहस

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने दावा किया कि शादी और आत्महत्या के बीच सिर्फ़ चार महीने का अंतर था। धारा 306 के तहत याचिकाकर्ता को दोषी ठहराने के लिए उकसावे को साबित करना ज़रूरी है। एफ़आईआर में लगाए गए आरोप बहुत अस्पष्ट थे और उनमें झगड़े का विवरण नहीं था। एफ़आईआर के ज़रिए यह नहीं कहा जा सकता कि जयश्री ने आत्महत्या के लिए उकसाया।

फ़ैसला

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि एफआईआर कोई विश्वकोश नहीं है; यह केवल मुखबिर की रिपोर्ट है। सिर्फ इसलिए कि एफआईआर में झगड़े का विवरण नहीं दिया गया, इसका मतलब यह नहीं निकाला जा सकता कि इसका आत्महत्या से कोई संबंध नहीं है। इसलिए एफआईआर को रद्द करने की याचिका खारिज की जाती है।

लेखक: पपीहा घोषाल

पीसी: न्यू इंडियन एक्सप्रेस