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राज्य सभा के सदस्य ने न्यायाधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 के प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी

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कांग्रेस नेता और राज्यसभा सदस्य जयराम रमेश ने ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट, 2021 की धारा 3 (1)(7), 5 और 7(1) की संवैधानिक वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। विवादित अधिनियम से व्यथित याचिकाकर्ता ने कहा कि इसे दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया और 13 अगस्त 2021 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई।

याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट, 2021 की उल्लिखित धाराएं असंवैधानिक हैं और संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करती हैं।

अधिनियम का अनुच्छेद 3(1) 50 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों को न्यायाधिकरणों में नियुक्त करने पर रोक लगाता है। यह प्रावधान वित्तीय अधिनियम, 2017 की धारा 184(1) के समान है, जिसे उसी न्यायालय ने रद्द कर दिया था।

धारा 3(7) के अनुसार समिति द्वारा केंद्र सरकार को दो नामों के पैनल की सिफारिश करना अनिवार्य है; यह स्पष्ट रूप से शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन करता है। धारा 3(7) वित्तीय अधिनियम, 2017 की धारा 184(7) के समान है जिसे मद्रास बार एसोसिएशन-IV बनाम भारत संघ के मामले में अलग रखा गया था।

याचिका में अधिनियम की धारा 5 के एक अन्य प्रावधान का उल्लेख किया गया है, जो सदस्यों के कार्यकाल को चार वर्ष के छोटे कार्यकाल के लिए निर्धारित करता है, जो न्यायिक स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। उन्होंने आगे कहा कि अधिनियम के प्रावधान केंद्र सरकार को समिति की सिफारिश पर निर्णय लेने का विवेक प्रदान करते हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का भी उल्लंघन है। धारा 7 (1) सरकार को एमबीए-IV फैसले में अदालत द्वारा निर्धारित मापदंडों के अनुरूप अपने विवेक से एचआरए तय करने की अनुमति देती है।

रमेश ने तर्क दिया कि विवादित प्रावधान न्यायिक समीक्षा की शक्ति और संविधान की सर्वोच्चता को कमजोर करता है। यह न्यायालय के उस फैसले को खारिज करता है, जिसमें इसी तरह के प्रावधानों को संविधान के भाग III का उल्लंघन माना गया था।


लेखक: पपीहा घोषाल