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पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने माना कि पगड़ी एक अनिवार्य धार्मिक प्रतीक है

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पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक 65 वर्षीय व्यक्ति पर हमला करने के आरोपी व्यक्तियों की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी, जिसमें उसकी पगड़ी उतारकर उसका वीडियो फेसबुक पर अपलोड किया गया था। न्यायालय ने अग्रिम जमानत खारिज करते हुए कहा कि पगड़ी एक आवश्यक धार्मिक प्रतीक है।

आरोपियों पर आईपीसी की धारा 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना), 148 (दंगा करना, घातक हथियार से लैस होना), 341 (गलत तरीके से रोकना), 295-ए (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना), 506 (आपराधिक धमकी) और 149 (गैरकानूनी रूप से एकत्र होना) तथा आईटी एक्ट, 2000 के तहत मामला दर्ज किया गया है।

आवेदकों की ओर से पेश हुए अधिवक्ता अमित अरोड़ा ने तर्क दिया कि धारा 295-ए को छोड़कर ऊपर वर्णित अपराध जमानती हैं। इसके अलावा, धारा 295 ए के संबंध में कोई भी प्रथम दृष्टया अपराध नहीं बनता है। इसके अलावा, एफआईआर एक साल से अधिक समय के बाद दर्ज की गई थी। जिस पर पीड़ित की ओर से पेश हुए अधिवक्ता विकास गुप्ता ने बताया कि अदालत में जाने से पहले शिकायतकर्ता ने पुलिस में कई शिकायतें कीं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई।

न्यायालय ने कहा कि पगड़ी उतारने के बाद खून से लथपथ और घायल व्यक्ति का वीडियो बनाना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाएगा।


लेखक: पपीहा घोषाल