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जमानत देने से पहले जमानत देने के मापदंडों को सही ढंग से लागू किया जाना चाहिए - सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और बीवी नागरत्ना की बेंच ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा दो हत्या के आरोपियों को अग्रिम जमानत देने के आदेश को खारिज कर दिया। बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट ने मामले में जमानत देने के मापदंडों को सही तरीके से लागू नहीं किया और हाईकोर्ट ने जमानत देते समय मामले की प्रकृति और गंभीरता पर विचार नहीं किया।
इस मामले में, दो प्रतिवादियों सहित चार आरोपी एक जीप में आए और मृतक की गोली मारकर हत्या कर दी। उन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 323 और 34 के तहत मामला दर्ज किया गया। दोनों आरोपियों ने अग्रिम जमानत के लिए मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में याचिका दायर की, जिसे मंजूर कर लिया गया।
शिकायतकर्ता/अपीलकर्ता (मृतक के साले) ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की। अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि उच्च न्यायालय ने केवल जांच अधिकारी की रिपोर्ट पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया था कि दोनों आरोपी प्रतिवादी अपराध के समय मौजूद नहीं थे।
पीठ ने महिपाल बनाम राजेश कुमार के मामले में दिए गए फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि जब अदालत जमानत आवेदन में उचित कारकों पर विचार करने में विफल रहती है, तो अपीलीय अदालत ऐसे जमानत आदेश को रद्द करने के लिए अपनी शक्ति का प्रयोग कर सकती है।
पीठ ने कहा कि दर्ज किए गए बयान और प्राथमिकी रिपोर्ट (एफआईआर) में दी गई जानकारी से स्पष्ट संकेत मिलता है कि दो आरोपी प्रतिवादियों की अपराध स्थल पर विशिष्ट भूमिका थी। इसके अलावा, अपराध की प्रकृति गंभीर थी।
न्यायालय ने अपील स्वीकार कर ली तथा मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा दी गई अग्रिम जमानत रद्द कर दी।
लेखक: पपीहा घोषाल