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सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने लखीमपुर खीरी घटना से निपटने के उत्तर प्रदेश सरकार के तरीके पर अपनी नाराजगी व्यक्त की

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सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना और जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने लखीमपुर खीरी मामले में एफआईआर दर्ज करने की मांग करने वाले पत्रों के आधार पर दर्ज याचिका पर सुनवाई करते हुए अपनी नाराजगी व्यक्त की। कोर्ट ने कहा कि जिस तरह से उत्तर प्रदेश सरकार और पुलिस ने जांच की, उससे ऐसा नहीं लगता कि अधिकारी गंभीर थे।

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने पीठ को बताया कि आठ किसानों को अपनी कार से कुचलने वाले आरोपी आशीष मिश्रा को कल सुबह 11 बजे पेश होने के लिए कहा गया है। अधिवक्ता साल्वे ने आगे कहा कि पोस्टमार्टम में गोली के घाव नहीं मिले हैं, इसलिए 160 सीआरपीसी का नोटिस भेजा गया था। लेकिन जिस तरह से कार चलाई गई, उससे आरोप सही हैं। धारा 302 का मामला बनता है।

सीजेआई रमना ने जवाब दिया, "जब मौत या गोली लगने के गंभीर आरोप हों, तो क्या इस देश में अन्य आरोपियों के साथ भी ऐसा ही व्यवहार किया जाएगा?"

न्यायमूर्ति कांत ने कहा, "ऐसा नहीं लगता कि अधिकारी जांच को लेकर गंभीर हैं; 8 निर्दोष लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी गई। सभी आरोपियों के खिलाफ कानून को अपना काम करना चाहिए।"

पीठ ने आगे पूछा कि क्या राज्य ने सीबीआई से मामले को अपने हाथ में लेने का अनुरोध किया है। साल्वे ने जवाब दिया कि राज्य ने ऐसा कोई अनुरोध नहीं किया है। यदि आप मामले में प्रगति से संतुष्ट नहीं हैं, तो राज्य इसे सीबीआई को सौंप देगा।

इसके बाद सीजेआई रमना ने कहा, "हम कोई टिप्पणी नहीं कर रहे हैं। हम आपका सम्मान करते हैं और उम्मीद करते हैं कि राज्य मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए आवश्यक कदम उठाएगा।"

पीठ ने डीजीपी से कहा कि जब तक कोई अन्य जांच एजेंसी जांच का जिम्मा नहीं ले लेती, तब तक सबूतों को सुरक्षित रखें।

पृष्ठभूमि

7 अक्टूबर को न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को घटना के संबंध में दर्ज एफआईआर और की गई गिरफ़्तारियों पर स्थिति रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया। न्यायालय को बताया गया कि न्यायिक जांच के साथ-साथ एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया गया है। पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लंबित घटना से संबंधित जनहित याचिकाओं का विवरण भी मांगा।


लेखक: पपीहा घोषाल