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पी एंड एच हाईकोर्ट - विधवा के बच्चे भी ससुराल वालों से भरण-पोषण पाने के हकदार हैं

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केस: हरि राम हंस बनाम दीपाली एवं अन्य

पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के अनुसार, हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम (एचएएमए), 1956 में "विधवा" शब्द में मां के साथ रहने वाले बच्चे भी शामिल हैं।

पुनरीक्षण याचिका में न्यायालय ने एक पारिवारिक न्यायालय के आदेश को संबोधित किया, जिसमें एक विधवा के ससुर को निर्देश दिया गया था कि वह मामले का निपटारा होने तक उसकी तीन पोतियों को प्रति वर्ष 2,000 रुपये का भरण-पोषण दे।

न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल ने पारिवारिक अदालत के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा,
1956 का अधिनियम दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों के कारण विधवा हो जाने वाली बेसहारा बहू की रक्षा के लिए बनाया गया था। "विधवा" शब्द में घर में रहने वाले सभी नाबालिग पोते-पोतियाँ शामिल हैं।

याचिकाकर्ता के ससुर की ओर से पेश हुए अधिवक्ता अभिमन्यु सिंह ने दलील दी कि एचएएमए विधवा बहू को अपने पति की मृत्यु के बाद ससुराल वालों से भरण-पोषण के लिए आवेदन करने की अनुमति देता है। हालांकि, इसमें ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। ससुर को पोते-पोतियों को भरण-पोषण राशि देनी होगी

अदालत ने यह पाते हुए पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी कि पोते-पोतियां भरण-पोषण पाने के हकदार हैं।