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भारत में सिविल केस/मुकदमे की प्रक्रिया
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1.1. चरण 1: वादपत्र/याचिका तैयार करना
1.2. चरण 2: प्रतिवादी की उपस्थिति और लिखित बयान दाखिल करना
1.3. चरण 3: सिविल मामलों में प्रतिवादी की उपस्थिति और लिखित बयान के लिए समय सीमा और परिणाम
1.5. चरण 5: प्रत्युत्तर दाखिल करना (प्रतिकृति)
1.6. चरण 6: साक्ष्य कार्यवाही और पक्षों की परीक्षा
1.7. चरण 7: पक्षों द्वारा तर्क प्रस्तुत करना
1.8. चरण 8: न्यायालय का निर्णय - डिक्री प्रदान करना या वादी के दावे को खारिज करना
2. सामान्य प्रश्न2.1. भारत में सिविल मुकदमा दायर करने में कितना खर्च आता है?
2.2. भारत में किसी सिविल मामले को अदालत में निपटाने में कितना समय लगता है?
3. निष्कर्षIndia में सिविल कानून को सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) द्वारा नियंत्रित किया जाता है। सटीक प्रक्रिया सिविल प्रक्रिया संहिता में निर्धारित धारा, आदेश और नियमों के अनुसार तय की जाती है। सिविल मामलों में कानूनी कार्यवाही एक चरणबद्ध प्रक्रिया होती है। सरफेसी अधिनियम, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम और दिवाला एवं दिवालियापन संहिता के तहत बैंकिंग विवाद जैसे कुछ अन्य सिविल मामले आते हैं, जो सीधे सिविल प्रक्रिया संहिता के दायरे में नहीं आते। फिर भी, वे समान प्रक्रिया का पालन करते हैं, जिसे आगे समझाया गया है।
सिविल केस दायर करने की प्रक्रिया क्या है?
सिविल केस दायर करना थकाऊ लग सकता है, लेकिन सही मार्गदर्शन से यह प्रक्रिया आसान हो सकती है। Rest The Case पर सबसे अच्छे सिविल वकील खोजें और अपनी कानूनी प्रक्रिया को सरल बनाएं। नीचे सिविल मामलों या सिविल मुकदमों के तहत आवश्यक चरणबद्ध और विस्तृत प्रक्रिया दी गई है।
चरण 1: वादपत्र/याचिका तैयार करना
सिविल कानून में मुकदमा दायर करने की पहली प्रक्रिया वाद दायर करना होता है। वाद का प्रारूपण सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) में निर्धारित आवश्यकताओं के अनुसार किया जाना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वाद में तथ्य और कानून इस प्रकार प्रस्तुत किए जाएं कि वह उस न्यायालय के समक्ष प्रथम दृष्टया विचारणीय लगे, जिसके अधिकार क्षेत्र में वाद दायर किया गया है।
वादपत्र में प्रस्तुत की जाने वाली मुख्य जानकारी इस प्रकार है:
- उस न्यायालय का नाम जिसमें वाद दायर किया गया है
- वादी का नाम, विवरण और निवास स्थान
- प्रतिवादी का नाम, विवरण और निवास स्थान (जहां तक संभव हो)
- यदि वादी या प्रतिवादी नाबालिग या मानसिक रूप से अस्वस्थ हो, तो इस संबंध में उल्लेख
- कार्रवाई का कारण बनने वाले तथ्य और यह कब उत्पन्न हुआ
- ऐसे तथ्य जो यह दर्शाते हैं कि न्यायालय के पास इस मामले को सुनने का अधिकार क्षेत्र है
- वादी द्वारा मांगी गई राहत
- यदि वादी ने अपने दावे का कोई हिस्सा समायोजित या छोड़ दिया है, तो वह समायोजित या छोड़ी गई राशि
- वाद की विषय-वस्तु के मूल्य का विवरण और अधिकारिता के लिए आवश्यक न्यायालय शुल्क का विवरण, जहां तक मामला स्वीकार्य हो
चरण 2: प्रतिवादी की उपस्थिति और लिखित बयान दाखिल करना
वादपत्र के स्वीकार किए जाने के बाद, न्यायालय प्रतिवादी को नोटिस जारी करता है। इसके बाद, प्रतिवादी एल.डी. ट्रायल कोर्ट के समक्ष उपस्थित होता है। इसके बाद, प्रतिवादी को नोटिस प्राप्त होने की तिथि से तीस दिनों की वैधानिक अवधि के भीतर लिखित बयान दाखिल करना होता है। लिखित बयान, वादी द्वारा दायर किए गए वादपत्र का उत्तर होता है। आदेश 8 नियम 1 के तहत, यह 30 दिनों की वैधानिक अवधि अगले 60 दिनों तक बढ़ाई जा सकती है।
यदि लिखित बयान 90 दिनों के भीतर दायर नहीं किया जाता है, तो एल.डी. ट्रायल कोर्ट प्रतिवादी के लिखित बयान दाखिल करने के अधिकार को समाप्त कर सकता है और कानूनी प्रक्रिया के अनुसार आगे बढ़ सकता है।
चरण 3: सिविल मामलों में प्रतिवादी की उपस्थिति और लिखित बयान के लिए समय सीमा और परिणाम
सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत निर्धारित आदेश के अनुसार, किसी मुकदमे की कार्यवाही के लिए समय सीमा तय की गई है। एक बार जब न्यायालय के समक्ष वाद दायर कर दिया जाता है, तो न्यायालय प्रतिवादी/प्रतिवादियों को समन जारी करता है। इसके बाद, प्रतिवादी को न्यायालय में उपस्थित होना होता है और समन की सेवा की तारीख से 30 दिनों के भीतर लिखित बयान दाखिल करना आवश्यक होता है। इस अवधि को सीपीसी के आदेश 8 नियम 1 के अनुसार 90 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है। यदि प्रतिवादी न्यायालय में उपस्थित नहीं होता है या लिखित बयान दाखिल करने में असफल रहता है, तो न्यायालय के पास एकपक्षीय कार्यवाही करने का अधिकार होता है, अर्थात वह प्रतिवादी के अधिकारों को समाप्त कर आगे बढ़ सकता है।
चरण 4: अपवाद
आदेश 8 नियम 1 के तहत, यदि प्रतिवादी 90 दिनों के भीतर लिखित बयान दाखिल करने में विफल रहता है, तो वह देरी के लिए माफी का आवेदन देकर लिखित बयान दाखिल कर सकता है। प्रतिवादी को न्यायालय को देरी का एक वैध कारण बताना आवश्यक होता है। यदि न्यायालय संतुष्ट होता है कि देरी एक उचित कारण से हुई है, तो वह प्रतिवादी द्वारा दायर किए गए लिखित बयान को स्वीकार कर सकता है और उसे रिकॉर्ड पर लिया जा सकता है।
चरण 5: प्रत्युत्तर दाखिल करना (प्रतिकृति)
यदि बाद में बचाव दाखिल नहीं किया जाता है, तो एक बार लिखित बयान दायर हो जाने के बाद, वादी को यदि प्रत्युत्तर दाखिल करना हो, तो उसे न्यायालय की अनुमति लेकर दाखिल किया जा सकता है। प्रत्युत्तर दाखिल करने की अवधि आदेश 8 नियम 6 के अंतर्गत न्यायालय की अनुमति की तिथि से 30 दिनों से अधिक नहीं होनी चाहिए। सिविल कानून में प्रत्युत्तर को प्रतिउत्तर भी कहा जाता है।
चरण 6: साक्ष्य कार्यवाही और पक्षों की परीक्षा
एक बार जब उपरोक्त चरण पूरे हो जाते हैं, तो ट्रायल कोर्ट मामले में साक्ष्य कार्यवाही के लिए आगे बढ़ता है। सबसे पहले, न्यायालय दस्तावेजों की स्वीकृति और अस्वीकृति की प्रक्रिया पूरी करता है, जिसमें दोनों पक्ष अपने दावों और बचावों से संबंधित दस्तावेजों को स्वीकार या अस्वीकार करते हैं, जो न्यायालय में प्रस्तुत किए गए हैं।
स्वीकृति और अस्वीकृति की प्रक्रिया के बाद, न्यायालय परीक्षण प्रक्रिया शुरू करता है, जिसमें दोनों पक्ष हलफनामे के माध्यम से साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं। इसके अलावा, वादपत्र और लिखित बयान के साथ संलग्न सहायक दस्तावेजों को वादी और प्रतिवादी दोनों द्वारा पेश किया जाता है। इसके बाद, पक्षों की जिरह होती है।
नोट: - यदि न्यायालय किसी विशेष मामले में एकपक्षीय कार्यवाही करता है, तो मामला एकपक्षीय साक्ष्य के साथ आगे बढ़ेगा। इसमें केवल वादी को शपथपत्र के माध्यम से अपना साक्ष्य प्रस्तुत करना होगा और उन दस्तावेजों को प्रस्तुत करना होगा, जिन्हें न्यायालय ने संलग्न किया है।
चरण 7: पक्षों द्वारा तर्क प्रस्तुत करना
किसी विशेष मामले में साक्ष्य प्रक्रिया पूरी होने के बाद, न्यायालय अंतिम चरण पर पहुंचता है, जिसे बहस का चरण कहा जाता है। इस चरण में दोनों पक्ष अपने वादपत्र, लिखित बयान, न्यायालय में प्रस्तुत दस्तावेजों और पक्षों की जांच के आधार पर अपनी दलीलें न्यायालय के समक्ष रखते हैं।
यदि न्यायालय किसी मामले में एकपक्षीय कार्यवाही कर रहा है, तो बहस भी एकपक्षीय बहस के रूप में होगी।
चरण 8: न्यायालय का निर्णय - डिक्री प्रदान करना या वादी के दावे को खारिज करना
एक बार जब बहस पूरी हो जाती है, तो एल.डी. न्यायालय पूरे मामले और कार्यवाही पर विचार करता है और निर्णय सुरक्षित रखता है। यदि न्यायालय पाता है कि वादी का दावा वैध है, तो वह उसी आधार पर डिक्री प्रदान करता है।
यदि न्यायालय को लगता है कि वादी का दावा वैध नहीं है, तो वह वादी द्वारा दायर वाद को खारिज कर सकता है।
नोट: - भले ही न्यायालय एकपक्षीय कार्यवाही कर रहा हो, यदि किसी भी स्तर पर यह स्पष्ट हो जाता है कि वादी द्वारा दायर वाद-पत्र सुनवाई योग्य नहीं है या दावा वैध नहीं है, तो न्यायालय वाद को खारिज कर सकता है, चाहे एकपक्षीय कार्यवाही पहले ही शुरू हो चुकी हो।
सामान्य प्रश्न
भारत में सिविल मुकदमा दायर करने में कितना खर्च आता है?
अदालती कार्यवाही के दौरान व्यक्ति को विभिन्न प्रकार के शुल्क देने पड़ते हैं, जिनमें सबसे पहले कोर्ट फीस शामिल होती है। यह आमतौर पर सिविल मामलों में दावे की राशि का एक छोटा प्रतिशत होता है। इसलिए, कोर्ट फीस और स्टाम्प फीस प्रत्येक मामले के अनुसार अलग-अलग हो सकती है।
न्यायालय शुल्क स्टाम्प अधिनियम के अनुसार, नीचे कुछ मानक शुल्क दिए गए हैं, जो किसी को देने पड़ सकते हैं:
- डिक्री/आदेश की प्रति - 0.50 पैसे
- कब्जे के मुकदमे के लिए वादपत्र - 5 रुपये
- साधारण/लिखित विवरण - 10 रुपये (5000 रुपये से 10,000 रुपये तक के मुकदमों के लिए)
मुकदमे के मूल्य के अनुसार न्यायालय द्वारा ली जाने वाली फीस:
- यदि मुकदमे का मूल्य 1,50,000 से 1,55,000 रुपये के बीच है, तो न्यायालय शुल्क 1,700 रुपये होगा।
- यदि मुकदमे का मूल्य 3,00,000 से 3,05,000 रुपये के बीच है, तो न्यायालय शुल्क 2,450 रुपये होगा।
- यदि मुकदमे का मूल्य 4,00,000 से 4,05,000 रुपये के बीच है, तो न्यायालय शुल्क 2,950 रुपये होगा।
भारत में किसी सिविल मामले को अदालत में निपटाने में कितना समय लगता है?
आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, आपराधिक मामलों का निपटारा आमतौर पर छह महीने में हो जाता है, जबकि सिविल मामलों को निपटाने में औसतन 3 साल तक का समय लग सकता है। हालांकि, लंबित मामलों की वास्तविक स्थिति इससे अलग हो सकती है।
औसतन, उच्च न्यायालय में मामलों के निपटारे में तीन साल से अधिक समय लग सकता है, जबकि अधीनस्थ न्यायालयों में निष्कर्ष पर पहुंचने में लगभग छह साल तक का समय लग सकता है।
निष्कर्ष
भारत में दीवानी मामलों को सुलझाने में समय लग सकता है, और यह प्रक्रिया कभी-कभी जटिल और बोझिल हो सकती है। हालांकि, सही वकील की सहायता से दीवानी मुकदमा दायर करने की प्रक्रिया को आसान बनाया जा सकता है। सोच रहे हैं कि अपने आस-पास एक अच्छा वकील कैसे खोजें? Rest The Case आपकी मदद के लिए उपलब्ध है।