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केरल उच्च न्यायालय में स्तन कैंसर की दवा रिबोसिक्लिब के अनिवार्य लाइसेंस के लिए याचिका दायर की गई।

Feature Image for the blog - केरल उच्च न्यायालय में स्तन कैंसर की दवा रिबोसिक्लिब के अनिवार्य लाइसेंस के लिए याचिका दायर की गई।

हाल ही में केरल उच्च न्यायालय ने केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT) को स्तन कैंसर की दवा रिबोसिक्लिब के अनिवार्य लाइसेंसिंग पर विचार करने का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति वीजी अरुण ने तत्काल कार्रवाई का आह्वान करते हुए कहा कि वर्तमान में स्तन कैंसर के रोगियों की एक बड़ी संख्या अत्यधिक कीमत वाली इस दवा को वहन करने में असमर्थता के कारण मर रही है।

उच्च न्यायालय एक ऐसे व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसे HER2- नेगेटिव मेटास्टेटिक स्तन कैंसर है और वह लक्षित चिकित्सा से गुजर रहा है।

याचिकाकर्ता ने दावा किया कि पूर्व बैंक कर्मचारी होने के कारण उसे मात्र 28,000 रुपये मासिक पेंशन मिलती है।

याचिकाकर्ता ने दावा किया कि इतनी कम पेंशन के बावजूद, उन्होंने तीन कैंसर दवाओं के लिए प्रति माह 63,000 रुपये का भुगतान किया, जिनमें से एक जीवन रक्षक दवा, रिबोसिसिलीब की कीमत 58,140 रुपये थी।

याचिकाकर्ता ने दलील दी कि रिबोसिलिब का निर्माण भारत में नहीं किया जा रहा है और अगर यह दवा भारत में बनाई जाती है तो इसकी कीमत कम हो जाएगी। इससे उनके और अन्य स्तन कैंसर रोगियों के लिए इलाज करवाना सस्ता हो जाएगा।

वर्तमान में, रिबोसिक्लिब को पेटेंट पर एकाधिकार प्राप्त है, तथा इसके निर्माताओं को पेटेंट धारक नोवार्टिस की सहमति के बिना दवा का उत्पादन करने पर प्रतिबंध है।

याचिकाकर्ता की ओर से उपस्थित अधिवक्ता मैत्रेयी सचिदानंद हेगड़े ने बताया कि सरकार पेटेंट अधिनियम, 1970 की धारा 92 (अनिवार्य लाइसेंस का प्रावधान) और धारा 100 (सरकार को चरम मामलों में जीवन रक्षक दवाओं की मांग करने का अधिकार देती है) का प्रयोग कर सकती है।

यह भी तर्क दिया गया कि दवा तक पहुंच प्रदान करने में सरकार की निष्क्रियता संविधान के अनुच्छेद 21 और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों का उल्लंघन करती है, जो सरकार पर सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रदान करने का दायित्व डालती है।

इस मामले की अगली सुनवाई 18 जुलाई को होगी।