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लिंग-तटस्थ कानून की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका
अनम कामिल और श्रीकांत प्रसाद नामक दो विधि छात्रों ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर भारतीय दंड संहिता के कुछ प्रावधानों पर पुनर्विचार और संशोधन के लिए निर्देश देने की मांग की है, जिसमें यौन उत्पीड़न (354ए-354डी), बलात्कार (376), महिलाओं के प्रति क्रूरता (498ए), आपराधिक धमकी (506) और महिलाओं के सम्मान का अपमान (509) शामिल हैं, ताकि उन्हें लिंग-तटस्थ बनाया जा सके।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि पुरुषों का जीवन मायने रखता है और ऐसे प्रावधान लिंग के आधार पर भेदभावपूर्ण हैं। यह समानता के मौलिक अधिकार को भी प्रभावित करता है और इसलिए संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 (1) का उल्लंघन करता है।
याचिका में आगे निम्नलिखित बातें भी कही गईं:
1. नकली नारीवाद ने भारत को प्रदूषित कर दिया है। महिलाएं नकली नारीवाद के नाम पर निर्दोष पुरुषों पर हमला करके कृत्य करती हैं।
2. महिलाएं नकली नारीवाद के जरिए जानबूझकर पुरुषों की गरिमा और सम्मान को नष्ट करती हैं।
3. कानून ने बिना किसी उचित प्रतिबंध के सत्ता जैसे धारदार हथियार दे दिए हैं।
याचिकाकर्ता ने हाल ही में लखनऊ में हुए एक मामले का भी हवाला दिया, जिसमें एक लड़की को कैब ड्राइवर को थप्पड़ मारते हुए देखा गया था। यौन अपराध कानून का दुरुपयोग करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है और पुरुषों की गरिमा और सम्मान को ठेस पहुंचा रही है। ये कानून 150 साल पहले बनाए गए थे, जब वास्तव में महिलाओं के उत्थान की आवश्यकता थी, लेकिन अब महिलाएं विकसित और सशक्त हैं। याचिकाकर्ताओं ने 2018 में सहमति से समलैंगिक यौन संबंध और समलैंगिकता को अपराधमुक्त करने की तुलना की, उसी तरह, विधायिका को यह पहचानना चाहिए कि पुरुषों के खिलाफ क्रूरता के अपराध किए जा रहे हैं।
याचिकाकर्ताओं ने अंत में टिप्पणी की और सवाल किया, "उस व्यक्ति के बारे में क्या कहा जाए जो बलात्कार के आरोप में निर्दोष साबित हो गया है। क्या समाज उस व्यक्ति के साथ वैसा ही व्यवहार करता है जैसा पहले करता था? इसका उत्तर है, नहीं"।
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लेखक: पपीहा घोषाल