समाचार
अग्निपथ योजना देश की राष्ट्रीय सुरक्षा को बनाए रखने के लिए एक सुविचारित नीति है - दिल्ली हाईकोर्ट

मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने अग्निपथ योजना की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखते हुए कहा कि यह योजना देश की राष्ट्रीय सुरक्षा को बनाए रखने के लिए एक सुविचारित नीति है। साथ ही, यह योजना मनमाना या तर्कहीन नहीं है, इसलिए पीठ इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
अग्निपथ योजना के तहत युवाओं को चार साल के लिए सेना में अस्थायी तौर पर भर्ती किया जाता है। चार साल के बाद, केवल 25% आवेदकों को सेना की नियमित सेवा में रखा जाएगा और शेष 75% को सेवानिवृत्त कर दिया जाएगा।
अग्निवीर के रूप में सेवा करते हुए बिताया गया समय नियमित सेवा नहीं माना जाएगा। एक बार जब कोई युवा चार साल के बाद सेवा में बना रहता है, तो उसे नई सेवा माना जाएगा।
इस योजना के कारण पूरे देश में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुआ तथा कई उच्च न्यायालयों में अनेक याचिकाएं दायर की गईं।
उच्च न्यायालय ने आज जारी एक विस्तृत फैसले में इस योजना को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया तथा सशस्त्र बलों में भर्ती प्रक्रियाओं पर रोक को चुनौती देने वाली याचिकाओं को भी खारिज कर दिया, जिनके लिए योजना शुरू होने से पहले विज्ञापन दिया गया था।
पीठ ने कहा कि अग्निपथ के कथित राजनीतिक उद्देश्यों के बजाय, प्रदान किए जा रहे लाभों पर ध्यान देना आवश्यक है। चार साल के बाद सशस्त्र बलों को छोड़ने वाले अग्निवीरों को उनके अनुभव के लिए उचित प्रमाण पत्र दिए जाएंगे और वे सार्थक रोजगार हासिल करने की बेहतर स्थिति में होंगे।
इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने तर्क दिया कि इस योजना के कई फायदे हैं, जिन्हें इस आशंका के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि सेना में प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद ऐसे व्यक्ति बेरोजगार हो सकते हैं या अवैध या अनैतिक गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं।
न्यायालय के अनुसार, हाल की सीमा झड़पों ने सैन्य सेवा के दौरान होने वाले मानसिक और शारीरिक तनाव को संभालने में सक्षम, अधिक चुस्त-दुरुस्त सशस्त्र बल की आवश्यकता पर बल दिया है।
इसने फैसला सुनाया कि अग्निपथ के लागू होने के कारण अभ्यर्थियों को ऐसी भर्ती की मांग करने का कोई निहित अधिकार नहीं है।