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दलबदल विरोधी कानून: पार्टी विलय के बाद एमपी/एमएलए को अयोग्य ठहराए जाने के अधिकार को चुनौती देने वाली जनहित याचिका बॉम्बे हाईकोर्ट में दायर

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बॉम्बे उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है जिसमें राजनीतिक दल के विलय के मामले में दलबदल विरोधी कानून के तहत विधायकों को अयोग्यता से दी गई सुरक्षा को चुनौती दी गई है [मीनाक्षी मेनन बनाम भारत संघ एवं अन्य]।

याचिकाकर्ता मीनाक्षी मेनन संविधान की दसवीं अनुसूची के पैराग्राफ 4 को खत्म करने की मांग कर रही हैं, जो पार्टी विलय की स्थिति में विधायकों को अयोग्यता से छूट देता है। याचिकाकर्ता ने दलबदल करने वाले विधायकों को विधायी कार्यवाही में भाग लेने या संवैधानिक पदों पर रहने से तब तक रोकने की भी मांग की है जब तक कि अदालतें उनकी अयोग्यता पर फैसला नहीं कर देतीं।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि दलबदल विरोधी कानून का मौजूदा स्वरूप उन मतदाताओं के अधिकारों की उपेक्षा करता है जो किसी खास पार्टी के उम्मीदवार का घोषणापत्र के साथ समर्थन करते हैं। याचिका में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि कानून में विधायक के खिलाफ अयोग्यता की कार्यवाही तय करने के लिए समय सीमा का अभाव है। याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि कुछ विधायक और दल कानून की खामियों का फायदा उठाते हैं, जिससे राजनीतिक दलबदल होता है।

मामले को तत्काल सुनवाई के लिए मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की खंडपीठ के समक्ष प्रस्तुत किया गया। अदालत ने याचिकाकर्ता के वकील को निर्देश दिया कि मामले को फिर से सूचीबद्ध करने से पहले याचिका में किसी भी तरह की खामी को दूर किया जाए।

याचिकाकर्ता का तर्क है कि निर्वाचित प्रतिनिधियों की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए पार्टी विभाजन और विलय के प्रावधान को संविधान के दायरे से बाहर घोषित किया जाना चाहिए। याचिका में इस बात पर जोर दिया गया है कि विभाजन और विलय के मामलों में मतदाताओं को हल्के में लिया जाता है और उनके पास संबंधित विधायक के खिलाफ कार्रवाई करने का कोई कानूनी सहारा नहीं है।

याचिकाकर्ता का दावा है कि विधान सभा में अध्यक्ष की भूमिका के बढ़ते राजनीतिकरण के कारण, सदस्यों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाएं या तो अनिश्चित काल तक लंबित रहती हैं या उन पर तुरंत निर्णय ले लिया जाता है।

याचिका में रेखांकित किया गया है, "इस बात के साक्ष्य हैं कि कानून राजनीतिक दलबदल पर रोक लगाने के उद्देश्य को पूरा नहीं करता है तथा इसके प्रावधानों से उन कृत्यों को छूट देकर सामूहिक दलबदल को वैध बनाता है जिन्हें विभाजन कहा गया है।"

लेखक: अनुष्का तरानिया

समाचार लेखक, एमआईटी एडीटी यूनिवर्सिटी