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अभियुक्त के साथ किसी भी तरह का समझौता ज़मानत की शर्त के तौर पर नहीं रखा जाना चाहिए - इलाहाबाद हाईकोर्ट

आरोपी के साथ विवाह या समझौता को जमानत की शर्त नहीं बनाया जाना चाहिए।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एक पीठ ने यौन अपराधों के आरोपियों को जमानत देने के संबंध में फैसला सुनाया।
तथ्य
इमरान (आवेदक) ने उच्च न्यायालय द्वारा जमानत याचिका खारिज किये जाने के बाद जमानत याचिका दायर की।
अपर सत्र न्यायाधीश, फिरोजाबाद।
आवेदक की ओर से उपस्थित वकील ने तर्क दिया कि टैक्सी चालक इमरान एक विवाहित व्यक्ति है।
पीड़ित व्यक्ति ट्रांसजेंडर है और वह जगह-जगह घूमने के लिए अपनी टैक्सी किराए पर लेता था। पैसे ऐंठने के लिए आवेदक पर इस मामले में झूठा आरोप लगाया गया है।
प्रथम सूचक के वकील ने दलील दी कि पीड़िता को जबरदस्ती फंसाया गया।
यौन संबंध। हालाँकि उन्होंने इस बात पर विवाद नहीं किया, लेकिन दोनों के बीच शुरू में दो साल तक सहमति से संबंध थे।
फ़ैसला
जमानत देते हुए अदालत ने अपर्णा भट एवं अन्य बनाम राज्य के हालिया मामले का हवाला दिया।
मध्य प्रदेश में एक मामले में कोर्ट ने आरोपी पर जमानत की शर्त लगाई कि वह पीड़िता से अपनी कलाई पर राखी बंधवाने का अनुरोध करे। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि जमानत की शर्तें पूरी होनी चाहिए।
आदेश इतने सख्त नहीं होने चाहिए कि उनका पालन करना असंभव हो जाए, जिससे जमानत भ्रामक हो जाए।
लेखक: पपीहा घोषाल