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किसी भी स्तर का प्रवेश, चाहे कितना भी छोटा क्यों न हो, धारा 377 आईपीसी के तहत एक अप्राकृतिक अपराध है - कलकत्ता हाईकोर्ट
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 के तहत आरोपों और एक वरिष्ठ द्वारा मेडिकल छात्रा के यौन उत्पीड़न के आरोपों से जुड़े एक आपराधिक मामले को खारिज करने से इनकार कर दिया, जिसमें कहा गया कि प्रवेश का कोई भी स्तर, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो, अप्राकृतिक अपराधों की धारा का उल्लंघन है। न्यायमूर्ति शम्पा दत्त (पॉल) ने यह भी कहा कि भले ही गुदा मैथुन अधूरा हो, फिर भी यह प्रवेश के रूप में योग्य होगा, और इस प्रकार इसे आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध का एक तत्व माना जा सकता है।
शिकायतकर्ता ने एक आरोपी, जो एक डॉक्टर है, पर उसे जबरन कपड़े उतारने और दो घंटे तक यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाया था, जिसके बाद दोनों आरोपियों पर आईपीसी की धारा 506 (आपराधिक धमकी) और 120 बी (आपराधिक साजिश) के तहत आरोप लगाए गए थे। शिकायतकर्ता ने आगे कहा कि दोनों आरोपियों ने उसे चेतावनी दी थी कि वह इस घटना के बारे में किसी से बात न करे।
हालांकि, आरोपियों ने तर्क दिया कि शिकायतकर्ता ने राजनीतिक मतभेदों के कारण उनके खिलाफ झूठा मामला दर्ज कराया था। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि शिकायतकर्ता ने मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखा था और इस घटना के संबंध में पश्चिम बंगाल के विधान सभा के एक सदस्य के साथ बैठक का उल्लेख किया था। इस प्रकार, आरोपियों ने दावा किया कि शिकायत केवल राजनीतिक हिसाब चुकता करने के लिए दर्ज की गई थी।
परिणामस्वरूप, दोनों आरोपियों ने याचिका के माध्यम से अपने खिलाफ मामला खारिज करने की मांग की।
न्यायमूर्ति दत्त ने आरोपों की गंभीरता पर टिप्पणी की और कहा कि अगर यह सच है, तो यह घटना दर्दनाक होगी और पीड़ित के मानसिक स्वास्थ्य पर इसका दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है। हालांकि, पीड़ित पर की गई मेडिकल रिपोर्ट से पता चला कि हाल ही में कोई चोट नहीं लगी थी और उसका गुदा द्वार स्वस्थ था। रिपोर्ट ने सुझाव दिया कि पूर्ण गुदा मैथुन का कोई सबूत नहीं था। न्यायालय का मानना था कि रिपोर्ट तैयार करने वाले चिकित्सा अधिकारी से निष्कर्षों को स्पष्ट करने के लिए परीक्षण के दौरान जिरह की जानी चाहिए। न्यायालय ने माना कि न्याय के हित के लिए परीक्षण आवश्यक था।
इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने पाया कि केस डायरी में कई बयान शिकायतकर्ता के दावों का समर्थन करते हैं, जिससे आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला स्थापित होता है। इस प्रकार, न्यायालय ने लंबित 2019 आपराधिक मुकदमे को खारिज करने की याचिका को खारिज कर दिया। न्यायालय ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ताओं को मुकदमे के दौरान अपना बचाव करने का मौका मिलेगा।