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किसी आरोपी को दी गई जमानत बिना पूर्व सूचना के रद्द नहीं की जा सकती - केरल हाईकोर्ट

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केस : मुहम्मद यासीन बनाम स्टेशन हाउस ऑफिसर व अन्य।

केरल उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति कौसर एडप्पागथ ने हाल ही में फैसला सुनाया कि किसी आरोपी को दी गई जमानत, जमानत की शर्तों के उल्लंघन के आधार पर, पूर्व सूचना जारी किए बिना और सुनवाई का अवसर दिए बिना रद्द नहीं की जा सकती।

न्यायालय के अनुसार, जमानत रद्द करने का अधिकार सीधे तौर पर व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित है, जो अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत संवैधानिक स्वतंत्रताओं में से एक है।

इसलिए, न्यायालय ने कहा कि अभियुक्त के जमानत के बाद के आचरण पर विचार किए बिना तथा किसी भी परिस्थिति का हवाला दिए बिना जमानत को यंत्रवत् रद्द नहीं किया जा सकता। इसके अलावा, जमानत रद्द करने से पहले नोटिस देना प्राकृतिक न्याय का एक मूलभूत सिद्धांत है।

न्यायालय एक विशेष फास्ट-ट्रैक अदालत द्वारा पारित आदेश के खिलाफ याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें एक आरोपी को उसका पक्ष सुने बिना दी गई जमानत रद्द कर दी गई थी।

जून में याचिकाकर्ता को गिरफ्तार किया गया और जुलाई में विशेष अदालत ने उसे जमानत दे दी। अदालत ने जमानत पर कुछ शर्तें भी लगाईं।

परिणामस्वरूप, अभियोजन पक्ष ने यह दावा करते हुए उसकी जमानत रद्द करने की मांग की कि उसने पीड़ित बच्ची से बातचीत न करने, उसे न देखने तथा इलाके में प्रवेश न करने की शर्तों का उल्लंघन किया है।

याचिकाकर्ता पर भारतीय दंड संहिता की धारा 354ए(आई)(आई) (यौन उत्पीड़न) और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम, 2012 की धारा 9 और 10 के तहत दंडनीय अपराधों का आरोप लगाया गया था।

विशेष अदालत ने याचिकाकर्ता को नोटिस जारी किये बिना ही आवेदन को रद्द करने की अनुमति दे दी तथा गैर-जमानती वारंट जारी कर दिया।

इस प्रकार, उच्च न्यायालय के समक्ष वर्तमान याचिका।

न्यायमूर्ति एडप्पागथ ने विशेष अदालत के आदेश को खारिज कर दिया और याचिकाकर्ता को पर्याप्त अवसर देने के बाद जमानत रद्द करने के आवेदन पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया।

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