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बॉम्बे हाईकोर्ट - सरकारें अपने नागरिकों के प्रति जवाबदेह हैं और उन्हें सवाल पूछने और जवाब देने के लिए तैयार रहना चाहिए

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सूचना प्रौद्योगिकी नियम 2023 में संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान, जिसमें तथ्य जाँच इकाइयों (FCU) की शुरुआत की गई थी, बॉम्बे उच्च न्यायालय ने सरकार के सत्य का पता लगाने के अधिकार और ऐसे विनियमनों की आवश्यकता के प्रति संदेह व्यक्त किया। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि सरकारें अपने नागरिकों के प्रति जवाबदेह हैं और उन्हें सवाल पूछने और जवाब देने के लिए तैयार रहना चाहिए।

ये याचिकाएँ एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया, न्यूज़ ब्रॉडकास्ट एंड डिजिटल एसोसिएशन, कॉमेडियन कुणाल कामरा और एसोसिएशन ऑफ़ इंडियन मैगज़ीन्स द्वारा दायर की गई थीं। उन्होंने उन संशोधनों को चुनौती दी थी जो FCU को सरकारी गतिविधियों के संबंध में झूठी या नकली मानी जाने वाली ऑनलाइन खबरों की पहचान करने और उन्हें लेबल करने का अधिकार देते हैं।

एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता गौतम भाटिया ने तर्क दिया कि सरकार के पास भाषण को सत्य या असत्य के रूप में वर्गीकृत करने और मध्यस्थता करने का संवैधानिक अधिकार नहीं है। भाटिया ने आगे तर्क दिया कि संशोधनों ने मूल अधिनियम, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम का उल्लंघन किया है। न्यूज ब्रॉडकास्ट एंड डिजिटल एसोसिएशन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार ने कहा कि स्पष्ट परिभाषाओं के अभाव के कारण संशोधनों में संवैधानिक वैधता का अभाव है और कहा कि संसद भी उन्हें प्रदान नहीं कर सकती है।

न्यायालय ने दोहराया कि अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार में झूठ फैलाने का अधिकार शामिल नहीं है, लेकिन इसमें किसी बयान की सत्यता का बचाव करने का अधिकार शामिल है। पीठ ने एफसीयू की शक्ति की सीमाओं पर भी सवाल उठाया।

केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता 29 जुलाई को दलीलें पेश करेंगे।