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बाल विवाह को शुरू से ही अमान्य घोषित किया जाना चाहिए - दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष आवेदन

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दिल्ली उच्च न्यायालय ने विधि एवं न्याय मंत्रालय तथा राष्ट्रीय महिला आयोग को नोटिस जारी कर उनसे भारत में सभी बाल विवाहों को प्रारंभ से ही अमान्य घोषित करने संबंधी याचिका पर उनका रुख पूछा है।

आयशा कुमारी ने एक लंबित याचिका में एक आवेदन दायर किया। आयशा ने बताया कि 16 साल की उम्र में उसकी शादी धोखे से एक लड़के से कर दी गई थी। उसने मान लिया था कि यह समारोह घर पर होने वाला एक सामान्य समारोह है। प्रतिवादी ने तर्क दिया कि उनकी शादी कभी संपन्न नहीं हुई क्योंकि उसने 2016-2018 के बीच जीजीएसआईपीयू से स्नातक की पढ़ाई की और फिर केंद्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा (सीटीईटी) में बैठी। बाद में, वह मास्टर कोर्स के लिए जामिया मिलिया इस्लामिया चली गई।

प्रतिवादी ने तर्क दिया कि वह 2020 में उसके घर आया था, ताकि उसे अपने साथ गुजरात ले जा सके। हालाँकि, वह घर से भाग गई और दिल्ली HC में याचिका दायर की।

याचिका में यह भी मांग की गई है कि बाल विवाह को असंवैधानिक घोषित किया जाए और संविधान के अनुच्छेद 21 के विपरीत हो। 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति द्वारा विवाह के लिए दी गई सहमति को शून्यकरणीय के बजाय शून्य घोषित किया जाना चाहिए।

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति नवीन चावला की खंडपीठ ने केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब मांगा और दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्ल्यू) को याचिकाकर्ता को आश्रय उपलब्ध कराने का निर्देश दिया।