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दिल्ली उच्च न्यायालय ने चार्टर्ड अकाउंटेंट फर्मों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही पर फैसला सुनाया

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दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में चार्टर्ड अकाउंटेंट्स (सीए) की फर्मों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही के संबंध में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। [हरिंदरजीत सिंह बनाम अनुशासन समिति बेंच III द इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया और अन्य] मामले में, अदालत ने स्पष्ट किया कि इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) की अनुशासन समिति (डीसी) पूरी फर्म के खिलाफ कार्यवाही कर सकती है, जब किसी शिकायत में आरोपों के लिए किसी एक सदस्य को अकेले जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।


न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि चार्टर्ड अकाउंटेंट्स (पेशेवर और अन्य कदाचार की जांच की प्रक्रिया और मामलों का संचालन) नियम, 2007 के नियम 8 के तहत 'संबंधित सदस्य' के रूप में नामित लोग ही कदाचार का आरोप लगाने वाली किसी भी शिकायत के संबंध में आईसीएआई के प्रति जवाबदेह हैं। न्यायालय ने नियम 8 की व्याख्या की और कहा कि जब डीसी को किसी एक व्यक्ति को जिम्मेदारी सौंपना अनुचित लगता है, तो समिति पूरी फर्म के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है।


न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि नियम दर्शाते हैं कि फर्म को दिया गया नोटिस वास्तव में शिकायत के पंजीकरण की तिथि से फर्म के सभी भागीदारों या कर्मचारियों को दिया गया नोटिस है। न्यायालय के अनुसार, फर्म शिकायत का उत्तर देने के लिए किसी व्यक्ति को जिम्मेदार ठहरा सकती है, बशर्ते कि वह व्यक्ति कथित कदाचार के समय फर्म के साथ भागीदार या कर्मचारी के रूप में जुड़ा हुआ हो। हालांकि, न्यायालय ने कहा कि यदि कोई भी सदस्य जिम्मेदारी नहीं लेता है, तो पूरी फर्म को जवाबदेह ठहराया जाएगा।


न्यायमूर्ति सिंह ने आगे कहा कि आईसीएआई को किसी फर्म के खिलाफ कार्रवाई करने और उसे नोटिस जारी करने का पूरा अधिकार है, खासकर उन मामलों में जहां फर्म द्वारा किए गए समझौते लंबी अवधि के लिए हैं और उनमें कई समझौते शामिल हैं। अदालत ने कहा कि ऐसी स्थितियों में किसी एक व्यक्ति को जिम्मेदार ठहराना अनुचित है; इसलिए, फर्म को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।


यह फैसला आईसीएआई के समक्ष लंबित अनुशासनात्मक कार्यवाही के खिलाफ विभिन्न फर्मों के विभिन्न सीए की 10 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए आया। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि वे 'संबंधित सदस्य' या 'जवाबदेह सदस्य' नहीं थे और उन्हें कार्यवाही से मुक्त कर दिया जाना चाहिए। अदालत ने इन याचिकाओं को खारिज कर दिया, प्रत्येक याचिकाकर्ता पर ₹1 लाख का जुर्माना लगाया और उन्हें और उनकी फर्मों को आठ सप्ताह के भीतर आईसीएआई द्वारा जारी नोटिस का जवाब दाखिल करने का अवसर प्रदान किया।


न्यायमूर्ति सिंह ने फर्मों के खिलाफ अनुशासनात्मक तंत्र को बढ़ाने और मजबूत करने के महत्व को रेखांकित किया, अर्थव्यवस्था में चार्टर्ड अकाउंटेंट्स की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया। अदालत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि उनके कर्तव्यों में किसी भी तरह की ढिलाई से महत्वपूर्ण वित्तीय नुकसान और धोखाधड़ी हो सकती है, उन्होंने चार्टर्ड अकाउंटेंट्स के लिए कानून का अनुपालन सुनिश्चित करने और अर्थव्यवस्था के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया।


न्यायालय ने निष्कर्ष देते हुए कहा कि:

  • 2022 के संशोधन अधिनियम द्वारा पारित संशोधनों को शीघ्रता से अधिसूचित करके आईसीएआई को मजबूत बनाना।

  • बहुराष्ट्रीय लेखा फर्मों के संचालन हेतु रूपरेखा को स्पष्ट रूप से स्थापित करने के लिए परामर्श करना।

न्यायालय के अनुसार, ये फर्म वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को भारत में लाने में योगदान देती हैं और युवा पेशेवरों के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान करती हैं। वे वैश्विक स्तर पर भारतीय व्यवसायों की भी सेवा करती हैं, जिससे लाइसेंसिंग समझौतों और ब्रांड उपयोग से संबंधित प्रावधानों की समीक्षा की आवश्यकता होती है।


इस मामले ने लेखांकन क्षेत्र में व्यावसायिक मानकों को कायम रखने, जवाबदेही सुनिश्चित करने तथा वित्तीय प्रथाओं की अखंडता बनाए रखने के प्रति न्यायपालिका की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया।


लेखक: अनुष्का तरानिया

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