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मातृत्व अवकाश देने का उद्देश्य महिलाओं को कार्यस्थल पर शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करना है - सुप्रीम कोर्ट

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मामला : दीपिका सिंह बनाम केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण एवं अन्य

पीठ: न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की पीठ

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि मातृत्व अवकाश लेने का महिला का अधिकार इसलिए नहीं छीना जा सकता क्योंकि उसने पहले अपने गैर-जैविक बच्चों के लिए चाइल्डकेयर अवकाश लिया था। इसके अलावा, मातृत्व लाभ अधिनियम की व्याख्या मातृत्व अवकाश के संबंध में केंद्रीय सिविल सेवा नियमों (सीसीएस नियमों) के उद्देश्य और इरादे के अनुसार की जानी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रही थी जिसमें चंडीगढ़ के पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (PGIMER) में नर्स के तौर पर काम करने वाली एक सरकारी कर्मचारी को उसके जैविक बच्चे के लिए मातृत्व अवकाश देने से मना कर दिया गया था, क्योंकि वह पहले ही अपने दो अन्य बच्चों के लिए ऐसी छुट्टियां ले चुकी थी। वे दो बच्चे उसके पति की पिछली शादी के बच्चे थे।

केन्द्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण और पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने उनकी याचिका खारिज कर दी और इस प्रकार, सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष वर्तमान अपील प्रस्तुत की गई।

प्रतिवादियों के वकील ने तर्क दिया कि मातृत्व अवकाश पर प्रतिबंध का उद्देश्य छोटे परिवारों को प्रोत्साहित करना था।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अपने पति की पिछली शादी से बच्चे पैदा करने की उनकी दुर्दशा स्वैच्छिक नहीं थी। इसलिए, आपकी दलील लागू नहीं होती।

पीठ ने स्पष्ट किया कि मातृत्व अवकाश देने का उद्देश्य महिलाओं को कार्यस्थल पर आने के लिए प्रोत्साहित करना है। इसलिए, उसने माना कि अपीलकर्ता मातृत्व अवकाश पाने की हकदार है और उसने उच्च न्यायालय तथा न्यायाधिकरण के आदेशों को खारिज कर दिया