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हाईकोर्ट मंदिरों को ड्रेस कोड के बारे में साइनबोर्ड लगाने का निर्देश नहीं दे सकता
मद्रास उच्च न्यायालय ने सभी मंदिरों को ड्रेस कोड निर्दिष्ट करने वाले साइनबोर्ड लगाने के निर्देश देने से इनकार कर दिया। उच्च न्यायालय ने कहा कि समाज पर अपनी राय थोपना न्यायालय की जिम्मेदारी नहीं है।
मुख्य न्यायाधीश मुनीश्वर नाथ भंडारी और न्यायमूर्ति डी भरत चक्रवर्ती की खंडपीठ ने कहा कि मंदिरों को साइनबोर्ड लगाने और उपाय करने की स्वतंत्रता है। साथ ही, भक्तों से अपेक्षा की जाती है कि वे मंदिर में प्रवेश करते समय मंदिर की परंपराओं का पालन करें।
एक मंदिर कार्यकर्ता ने हिंदू धार्मिक एवं धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग के आयुक्त के समक्ष यह निर्देश मांगा कि वे "माथे पर सनातन धर्म का चिह्न, धोती/पायजामा-कुर्ता, साड़ी/आधी साड़ी/सलवार कमीज" जैसे ड्रेस कोड के निर्देश देते हुए दृश्य संकेत लगाएं।
याचिकाकर्ता के अनुसार हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम, 1959 के तहत केवल हिंदुओं को ही मंदिर में प्रवेश की अनुमति है। उन्होंने आगे तर्क दिया कि इस तरह के ड्रेस कोड की अनुपस्थिति के कारण अन्य समुदायों के लोग भी मंदिरों में प्रवेश कर रहे हैं।
महाधिवक्ता आर शुनमुगसुंदरम ने याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया कि मंदिर के प्रबंधन के पास ड्रेस कोड के संबंध में नियामक उपाय हैं। और यही बात मृणालिनी पाधी बनाम भारत संघ के मामले में दिए गए फैसले पर भी लागू होती है।
उपरोक्त के मद्देनजर, पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि वह कोई सामान्य निर्देश जारी नहीं कर सकती।