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कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कर्नाटक सरकार की उस नीति की आलोचना की जिसमें वित्तीय सहायता केवल उन किसानों के परिवारों तक सीमित रखी गई है जिन्होंने बैंक से कर्ज लेकर आत्महत्या कर ली।

5 मार्च
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कर्नाटक सरकार की उस नीति की तीखी आलोचना की है जिसमें बैंकों या वित्तीय संस्थानों से ऋण लेकर अपनी जीवन लीला समाप्त करने वाले किसानों के परिवारों को 5 लाख रुपये की वित्तीय सहायता देने को सीमित कर दिया गया है।
न्यायालय ने राज्य के मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि वे सरकार का रुख स्पष्ट करें कि क्यों केवल एक श्रेणी के परिवारों को ही मुआवजा दिया जा रहा है, जिन्होंने बैंकों से पैसे लिए हैं और निजी साहूकारों से पैसे उधार लेने वाले परिवारों को मुआवजा क्यों नहीं दिया जा रहा है? न्यायालय ने यह निर्देश कर्नाटक सरकार द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट पर गौर करने के बाद जारी किया, जिसमें यादगीर जिले के शाहपुर तालुक में बैंकों से कर्ज लेने वाले किसानों के परिवारों को दिए गए मुआवजे को दिखाया गया है। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि 2016 से 2020 के बीच 125 किसानों ने आत्महत्या की, जिनमें से 20 पात्र नहीं हैं क्योंकि उन्होंने निजी साहूकारों से पैसे उधार लिए थे।
न्यायालय ने आगे कहा कि नीति भेदभावपूर्ण प्रतीत होती है और कहा कि किसान आत्महत्या इसलिए करता है क्योंकि वह भारी कर्ज में डूबा हुआ है; वह ऋण नहीं चुका सकता और उसके पास आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प नहीं है। बैंक से ऋण लेने वाले किसान द्वारा आत्महत्या करने और साहूकार से ऋण लेने वाले किसानों के बीच क्या अंतर है?
लेखक: पपीहा घोषाल
- KARNATAKA HC- CRITICIZED KARNATAKA GOVERNMENT'S POLICY TO LIMIT THE GRANT OF FINANCIAL AID ONLY TO FAMILIES OF FARMERS WHO ENDED THEIR LIVES AFTER BORROWING FROM THE BANK
- कर्नाटक हायकोर्ट- बँकेकडून कर्ज घेऊन जीवन संपवणाऱ्या शेतकऱ्यांच्या कुटुंबांनाच आर्थिक मदत देण्यावर मर्यादा घालण्याच्या कर्नाटक सरकारच्या धोरणाची टीका