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कर्नाटक हाईकोर्ट- घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 सीआरपीसी की धारा 468 द्वारा वर्जित नहीं है

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19 मई

याचिकाकर्ता और प्रतिवादी क्रमशः पति और पत्नी हैं।

प्रतिवादी ने याचिकाकर्ता के खिलाफ घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 12 के तहत ट्रायल कोर्ट में याचिका दायर की। ट्रायल कोर्ट ने प्रतिवादी को 8,000/- रुपये प्रति माह देने का आदेश दिया। याचिकाकर्ता ने ट्रायल कोर्ट के उक्त आदेश को चुनौती दी। इसके अलावा, प्रथम अपीलीय न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट को 4,32,000/- रुपये की राशि हस्तांतरित करने का निर्देश दिया और ट्रायल कोर्ट को प्रतिवादी को उक्त राशि जारी करने का निर्देश दिया।

प्रतिवादी ने उक्त राशि जारी करने की मांग करते हुए एक आवेदन दायर किया। याचिकाकर्ता ने इस आधार पर आवेदन का विरोध किया कि याचिका कथित घरेलू घटना की तारीख से 10 साल बाद दायर की गई थी, इसलिए याचिका स्वयं ही विचारणीय नहीं थी। इसलिए सीआरपीसी की धारा 468 लागू होती है (सीमा अवधि बीत जाने के बाद संज्ञान लेने पर रोक)।

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 468 तभी लागू होती है जब कोई अपराध होता है। यदि कोई अपराध नहीं है, तो कोई सीमा नहीं है। इस प्रकार घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 में, यदि घरेलू हिंसा को अपराध नहीं कहा जाता है या अपराध के रूप में नहीं माना जाता है, तो यह न्यायालय द्वारा राहत प्रदान करने की बात करता है, न कि दोषसिद्धि और सजा की। घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 केवल यह पता लगाने के लिए जांच शुरू करने का प्रावधान है कि क्या ऐसा कोई कृत्य किया गया है।

उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट को प्रतिवादी को 4,32,000 रुपए जारी करने का निर्देश दिया तथा तदनुसार याचिकाकर्ता की दलीलें खारिज कर दीं।