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केरल हाईकोर्ट बेनाच एक हिंदू संगठन द्वारा खराब शोध के लिए याचिका

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केरल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एस मणिकुमार और न्यायमूर्ति शाजी पी चाली की पीठ ने एक हिंदू संगठन- हिंदू सेवा केंद्रम की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें मुस्लिम, अनुसूचित जाति, लैटिन कैथोलिक और ईसाई नादर जैसे कुछ समुदायों को आरक्षण और वित्तीय सहायता रद्द करने की मांग की गई थी। पीठ ने उचित शोध न करने के कारण याचिका को खारिज कर दिया और 25000/- रुपये का जुर्माना लगाया।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए अधिवक्ता आर कृष्णराज ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 15(4) और 16(4) के अनुसार, कोई भी राज्य शिक्षा और रोजगार के उद्देश्य से सामाजिक और पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए विशेष प्रावधान करता है। हालांकि, उन्होंने सवाल उठाया कि क्या उपर्युक्त श्रेणियां अनुसूचित जातियों और पिछड़े हिंदुओं की तुलना में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ी हैं।

महाधिवक्ता के गोपालकृष्ण कुरुप ने 10 सितम्बर, 1993 के राजपत्र अधिसूचना का हवाला दिया, जिसमें कुछ समुदायों को राज्यवार सामाजिक रूप से पिछड़े के रूप में चिन्हित किया गया है तथा तदनुसार केन्द्र और राज्य सरकारों के आदेशानुसार आरक्षण प्रदान किया गया है।

पीठ ने कहा कि " जब सरकार पहले ही अधिसूचना जारी कर कुछ समुदायों को अल्पसंख्यक घोषित कर चुकी है और ऐसी घोषणा करने का अधिकार भारत के राष्ट्रपति के पास है, तो हम यह समझने में असमर्थ हैं कि याचिकाकर्ता ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत इस न्यायालय से घोषणा की मांग कैसे की है।"

पीठ ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इसकी प्रार्थना पूरी तरह से गलत और असमर्थनीय है