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मेघालय हाईकोर्ट - बलपूर्वक या अनिवार्य तरीके से टीकाकरण मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है

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मेघालय उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बिस्वनाथ सोमद्दर और न्यायमूर्ति एचएस थांगखियू की खंडपीठ ने कहा कि अनुच्छेद 21 में स्वास्थ्य सेवा का अधिकार शामिल है, जिसमें टीकाकरण भी शामिल है। हालांकि, जबरन टीकाकरण या बलपूर्वक टीकाकरण करना मूल उद्देश्य का उल्लंघन करता है। इसलिए, जबरन टीकाकरण को शुरू से ही अवैध घोषित किया जाना चाहिए।

पीठ मेघालय राज्य के उस आदेश के खिलाफ याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उपायुक्तों के विभिन्न आदेशों के माध्यम से विक्रेताओं, दुकानदारों, स्थानीय टैक्सी चालकों और अन्य लोगों के लिए अपना व्यवसाय फिर से शुरू करने से पहले टीकाकरण करवाना अनिवार्य कर दिया गया था।

पीठ के समक्ष मुद्दा यह था कि 'क्या टीकाकरण को अनिवार्य बनाया जा सकता है और क्या इस तरह की कार्रवाई से किसी नागरिक के आजीविका कमाने के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है?'

न्यायालय ने कहा कि टीकाकरण समय की मांग है और इस वैश्विक महामारी पर काबू पाने के लिए यह एक परम आवश्यकता है, जो हमारी दुनिया को डुबो रही है। हालांकि, राज्य की कल्याणकारी प्रकृति आजीविका के उनके अधिकार को छीनकर, सार्वजनिक हित की आड़ में बिना किसी औचित्य के उन्हें अपने व्यवसाय से कमाने से रोककर बलपूर्वक नकारात्मक सुदृढ़ीकरण के लिए नहीं है, बल्कि अनुच्छेद 38 के तहत अनिवार्य सामाजिक व्यवस्था को प्रभावी बनाने के लिए ठोस प्रयासों के साथ चलने में निहित है।

इसलिए, टीकाकरण के लिए कल्याणकारी नीति का अधिकार कभी भी प्रमुख मौलिक अधिकार, अर्थात जीवन, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आजीविका के अधिकार को प्रभावित नहीं कर सकता है, खासकर तब जब टीकाकरण और व्यवसाय और/या पेशे की निरंतरता के निषेध के बीच कोई उचित संबंध मौजूद न हो।

लेखक: पपीहा घोषाल