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जहां दो वयस्कों ने स्वेच्छा से साथ रहने का फैसला किया है, वहां नैतिक पुलिसिंग की अनुमति नहीं दी जा सकती - मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

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मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा कि जहां दो वयस्कों ने स्वेच्छा से साथ रहने का निर्णय लिया है, वहां नैतिक पुलिसिंग की अनुमति नहीं दी जा सकती, चाहे वे लिव-इन रिलेशनशिप में हों या विवाह के माध्यम से।

न्यायमूर्ति नंदिता दुबे की एकल पीठ गुलजार खान द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर फैसला सुना रही थी, जिसमें उन्होंने अपनी पत्नी की रिहाई की मांग की थी, जिसे उसके माता-पिता जबरन बनारस ले गए हैं और अवैध रूप से हिरासत में रखा गया है।

याचिकाकर्ता ने अपनी पत्नी (19 वर्षीय) से उसकी सहमति से विवाह किया, जब उसने स्वेच्छा से इस्लाम धर्म अपना लिया था। वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से पेश हुई पत्नी ने पहले कहा कि उसने स्वेच्छा से अपने पति से विवाह किया था और उसे कभी भी धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर नहीं किया गया था। उसने अदालत को यह भी बताया कि उसके माता-पिता और दादा-दादी उसे जबरन बनारस ले गए थे, जहाँ उसे पीटा गया और लगातार उसके पति (याचिकाकर्ता) के खिलाफ बयान देने की धमकी दी गई।

राज्य की ओर से पेश सरकारी वकील प्रियंका मिश्रा ने दलील दी कि यह शादी मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता (एमपीएफआर) अधिनियम 2021 का उल्लंघन है और महिला को नारी निकेतन भेजा जाना चाहिए। कोर्ट ने राज्य की दलील को खारिज कर दिया।

पक्षों की दलीलों पर विचार करने के बाद न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता की पत्नी बालिग है और महिला की उम्र पर किसी भी पक्ष ने कोई विवाद नहीं किया है। न्यायालय ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे पत्नी को याचिकाकर्ता को सौंप दें और यह सुनिश्चित करें कि दोनों को कोई खतरा न हो।


लेखक: पपीहा घोषाल