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एक साल तक जमानत याचिका सूचीबद्ध न करना आरोपी की स्वतंत्रता का हनन है - सुप्रीम कोर्ट
सर्वोच्च न्यायालय ने यह जानकर निराशा और आश्चर्य व्यक्त किया कि पंजाब और हरियाणा न्यायालय ने सीआरपीसी की धारा 439 के तहत एक वर्ष से अधिक समय तक जमानत याचिका को सूचीबद्ध नहीं किया है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि नियमित जमानत के लिए आवेदनों को सूचीबद्ध न करना हिरासत में व्यक्ति की स्वतंत्रता पर आघात करता है।
न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यन की पीठ ने पी एंड एच अदालत के एक आदेश के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई की, जिसमें फरवरी 2020 से लंबित सीआरपीसी की धारा 439 के तहत जमानत याचिका पर सुनवाई करने का अनुरोध खारिज कर दिया गया।
पीठ ने कहा कि जब महामारी के दौरान अन्य अदालतें सभी मामलों की सुनवाई करने और उन्हें अस्वीकार करने का प्रयास कर रही हैं, तो ऐसे आवेदनों को सूचीबद्ध न करना न्याय प्रशासन को पराजित करता है। कोविड 19 की मौजूदा महामारी के तहत, कम से कम आधे न्यायाधीशों को वैकल्पिक दिनों में बैठना चाहिए ताकि संकट में फंसे व्यक्ति की सुनवाई हो सके।
पीठ ने उम्मीद जताई कि हाईकोर्ट जल्द से जल्द इस मामले पर सुनवाई करेगा और आरोपी के अधिकारों को बहाल करेगा। पीठ ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया कि वे इस आदेश और चिंता को सक्षम प्राधिकारी के समक्ष रखें ताकि त्वरित सुधारात्मक कदम उठाए जा सकें।
लेखक: पपीहा घोषाल