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राष्ट्रपति ने 'महिला आरक्षण विधेयक' को मंजूरी दी

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भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने महिला आरक्षण विधेयक को अपनी मंजूरी दे दी है, जिससे यह संविधान (एक सौ छठा संशोधन) अधिनियम, 2023 के रूप में आधिकारिक रूप से लागू हो गया है। यह ऐतिहासिक कानून संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रावधान करता है। इसके अलावा, यह आरक्षण अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए पहले से निर्धारित सीटों को भी शामिल करने का प्रावधान करता है।

केंद्रीय विधि एवं न्याय राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल द्वारा 19 सितंबर को लोकसभा में पेश किया गया यह विधेयक दोनों सदनों में भारी बहुमत से पारित हुआ। 19 सितंबर को राज्य सभा ने सर्वसम्मति से विधेयक को मंजूरी दे दी, जिसमें ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के सांसद असदुद्दीन ओवैसी और इम्तियाज जलील के केवल दो विरोधी मत थे। इसके बाद, 20 सितंबर को लोकसभा ने आठ घंटे की लंबी बहस के बाद 452:2 के बहुमत से इसे मंजूरी दे दी।

महत्वपूर्ण बात यह है कि विधेयक में यह स्पष्ट किया गया है कि संशोधन अधिनियम के लागू होने के बाद पहली जनगणना के दौरान परिसीमन के बाद आरक्षण प्रभावी होगा। यह प्रावधान संशोधन अधिनियम के लागू होने से 15 साल तक लागू रहेगा।

विधेयक के उद्देश्यों और कारणों का विवरण निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में महिलाओं की भागीदारी के महत्व को रेखांकित करता है, उनके विविध दृष्टिकोणों को विधायी बहसों को समृद्ध करने के रूप में मान्यता देता है। यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि 2047 तक "विकसित भारत" के लक्ष्य को प्राप्त करने में महिला सशक्तिकरण एक महत्वपूर्ण घटक है।

विधेयक में जोर दिया गया है, ''आजादी के 75 साल पूरे होने के बाद, राष्ट्र ने 2047 तक 'विकासशील भारत' बनने के लक्ष्य के साथ अमृतकाल की यात्रा शुरू कर दी है।'' ''आबादी का आधा हिस्सा बनने वाली महिलाओं की भूमिका इस लक्ष्य को हासिल करने में बेहद महत्वपूर्ण है।''

यह ऐतिहासिक कानून लैंगिक समानता और भारत के राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं के बढ़ते प्रतिनिधित्व की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

लेखक: अनुष्का तरानिया

समाचार लेखक, एमआईटी एडीटी यूनिवर्सिटी