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सुप्रीम कोर्ट ने ईपीएफ अधिनियम के तहत 'मूल वेतन' और न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के तहत 'न्यूनतम वेतन' के बीच अंतर बताया
सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सहायक भविष्य निधि आयुक्त की अपील को खारिज कर दिया है। उच्च न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला था कि कर्मचारी भविष्य निधि अधिनियम 1952 के तहत 'मूल वेतन' शब्द की व्याख्या करने के लिए न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के तहत 'मजदूरी की न्यूनतम दर' की परिभाषा को संदर्भित करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि नियोक्ता ने उचित भविष्य निधि भुगतान से बचने के लिए वेतन संरचना में हेरफेर किया था। उच्च न्यायालय और उसकी खंडपीठ ने पहले इस तर्क को खारिज कर दिया था।
न्यायमूर्ति हिमा कोहली और राजेश बिंदल ने अपील को खारिज करते हुए इस बात पर जोर दिया कि ईपीएफ अधिनियम पहले से ही धारा 2(बी) के तहत 'मूल वेतन' को परिभाषित करता है, जिससे व्यापक अर्थ के लिए न्यूनतम मजदूरी अधिनियम से परामर्श करने की आवश्यकता समाप्त हो जाती है। न्यायालय ने कहा कि इस संबंध में विधायिका की मंशा स्पष्ट थी।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी ने तर्क दिया कि ईपीएफ अधिनियम के तहत मूल वेतन निर्धारित करने के लिए 'मजदूरी की न्यूनतम दर' पर विचार किया जाना चाहिए। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के रुख का समर्थन करते हुए कहा कि 'मूल वेतन' न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 में परिभाषित 'न्यूनतम वेतन' के बराबर नहीं है। न्यायालय ने इस मामले में पहले के फैसले की स्थिति को बरकरार रखा।
लेखक: अनुष्का तरानिया
समाचार लेखक, एमआईटी एडीटी यूनिवर्सिटी