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जीएनएलयू में चौंकाने वाले खुलासे: गुजरात उच्च न्यायालय ने कार्रवाई की मांग की

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गुजरात उच्च न्यायालय ने गुजरात राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (जीएनएलयू), गांधीनगर में बलात्कार, छेड़छाड़, भेदभाव, समलैंगिकता-विरोध और पक्षपात की घटनाओं पर तथ्य-खोजी समिति की रिपोर्ट के परेशान करने वाले निष्कर्षों पर आश्चर्य व्यक्त किया है। पूर्व उच्च न्यायालय न्यायाधीश न्यायमूर्ति हर्षा देवानी के नेतृत्व वाली समिति ने जीएनएलयू में यौन उत्पीड़न और समलैंगिकता-विरोध के आरोपों की जांच के बाद रिपोर्ट प्रस्तुत की।

मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध माई ने किसी भी गलत काम से इनकार करने के लिए जीएनएलयू प्रशासन की आलोचना करते हुए कहा, "यह रिपोर्ट भयावह है। यह डरावनी है।" अदालत ने समिति की स्पष्ट निष्कर्षों के लिए प्रशंसा की, जिसमें आंतरिक शिकायत समिति की कमी सहित घटनाओं की गंभीरता पर जोर दिया गया।

अदालत ने सवाल उठाया कि राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय में ऐसी घटनाएं कैसे हो सकती हैं और जीएनएलयू रजिस्ट्रार द्वारा आरोपों से पहले इनकार करने की आलोचना की। मुख्य न्यायाधीश अग्रवाल ने टिप्पणी की, "ये लोग बच्चों की सुरक्षा कैसे करेंगे?" अदालत ने छात्रों को घटनाओं के बारे में बोलने में होने वाली कठिनाई पर प्रकाश डाला, जिसके बाद समिति ने जवाब के लिए प्रश्नावली प्रदान की।

रिपोर्ट में आरोपियों के नाम उजागर करते हुए कहा गया कि पुलिस के सामने मामले को दबाने में एक राजनीतिक रूप से प्रभावशाली व्यक्ति शामिल था। अदालत ने छात्रों पर भरोसा करते हुए कहा, "हम छात्रों से कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वे कुछ गलत कहेंगे और वे ऐसा क्यों करेंगे?"

जीएनएलयू के मामलों की उच्चस्तरीय जांच की मांग करते हुए कोर्ट ने एडवोकेट जनरल कमल त्रिवेदी से रिपोर्ट पर कार्रवाई करने के लिए एक अधिकारी का सुझाव देने को कहा। चीफ जस्टिस अग्रवाल ने छात्रों के लिए चिंता व्यक्त करते हुए कहा, "अगर लॉ कॉलेज में यह स्थिति है, तो हम किसी को अपना चेहरा नहीं दिखा सकते।"

अदालत ने रिपोर्ट पर सक्षम निकाय द्वारा कार्रवाई की आवश्यकता पर बल दिया तथा अगली सुनवाई 12 मार्च के लिए निर्धारित की।

लेखक: अनुष्का तरानिया

समाचार लेखक, एमआईटी एडीटी यूनिवर्सिटी