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नाबालिग बलात्कार पीड़िता की उम्र निर्धारित करने के लिए आधार कार्ड को सबूत के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता - मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

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हाल ही में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की जबलपुर पीठ ने एक फैसले में कहा कि आधार कार्ड को बलात्कार की शिकार नाबालिग की उम्र निर्धारित करने के लिए सबूत के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। एकल न्यायाधीश पीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल ने कहा कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम नाबालिग बलात्कार पीड़िता की उम्र निर्धारित करने की प्रक्रिया प्रदान करता है। अधिनियम में उम्र के प्रमाण के रूप में जन्म प्रमाण पत्र या स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र का उपयोग करने का सुझाव दिया गया है। पीठ के अनुसार, यदि वे दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं, तो व्यक्ति की उम्र निर्धारित करने के लिए ऑसिफिकेशन टेस्ट का उपयोग किया जा सकता है।

न्यायमूर्ति अग्रवाल एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रहे थे, जिसमें 8 अप्रैल, 2023 को आधार कार्ड को आयु के प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं करने के विशेष अदालत के फैसले को संशोधित करने के लिए याचिका दायर की गई थी। अपीलकर्ता ने जब्बार बनाम राज्य में दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले का हवाला दिया, जिसने आयु निर्धारित करने में आधार को एक बेहतर दस्तावेज के रूप में मान्यता दी थी।

हालांकि, पीठ ने जरनैल सिंह बनाम हरियाणा राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि जेजे अधिनियम में निर्धारित नियमों को केवल इसलिए नहीं दरकिनार किया जा सकता क्योंकि कोई विशेष दस्तावेज सरकार द्वारा जारी किया गया है।

इसके अतिरिक्त, पीठ ने कहा कि आधार भारत सरकार द्वारा नहीं, बल्कि एक स्वतंत्र एजेंसी, भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) द्वारा जारी किया जाता है।

न्यायमूर्ति अग्रवाल ने अंततः पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि बलात्कार पीड़िता की आयु जेजे अधिनियम के अनुसार निर्धारित की जानी चाहिए तथा आधार कार्ड आयु का वैध प्रमाण नहीं है।

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