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BNS धारा 24 - नशे की स्थिति में किसी विशेष इरादे या ज्ञान से किया गया अपराध

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1. कानूनी प्रावधान 2. सरल व्याख्या 3. मुख्य विवरण 4. BNS धारा 24 को स्पष्ट करने वाले व्यावहारिक उदाहरण

4.1. उदाहरण 1 (स्वैच्छिक नशा - चोरी)

4.2. उदाहरण 2 (स्वैच्छिक नशा - हत्या)

5. मुख्य सुधार और परिवर्तन: IPC धारा 86 से BNS धारा 24 तक 6. निष्कर्ष 7. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

7.1. प्रश्न 1: IPC की धारा 86 को संशोधित करके BNS की धारा 24 क्यों बनाई गई?

7.2. प्रश्न 2: IPC की धारा 86 और BNS की धारा 24 में मुख्य अंतर क्या हैं?

7.3. प्रश्न 3: क्या BNS की धारा 24 के अंतर्गत अपराध जमानती है या गैर-जमानती?

7.4. प्रश्न 4: BNS की धारा 24 के तहत किए गए अपराध की सजा क्या है?

7.5. प्रश्न 5: क्या BNS की धारा 24 के तहत कोई जुर्माना लगाया जाता है?

7.6. प्रश्न 6: क्या BNS की धारा 24 के अंतर्गत अपराध संज्ञेय (Cognizable) है या असंज्ञेय (Non-Cognizable)?

7.7. प्रश्न 7: IPC की धारा 86 के लिए BNS में कौन सी धारा समान है?

भारतीय न्याय संहिता (BNS) एक राष्ट्रव्यापी दंड संहिता है जिसे हाल ही में लागू किया गया है। यह इस जटिल मुद्दे को संबोधित करती है कि यदि कोई व्यक्ति नशे की हालत में ऐसा अपराध करता है जिसमें विशेष मानसिक स्थिति (जैसे कि विशिष्ट ज्ञान या इरादा) आवश्यक है, तो क्या उस पर आपराधिक ज़िम्मेदारी होगी। BNS की धारा 24 में एक मूल सिद्धांत यह बताया गया है कि ऐसे मामलों में नशे को कोई बचाव के रूप में नहीं माना जाएगा, और नशे में किया गया कृत्य ऐसा समझा जाएगा जैसे व्यक्ति ने वही ज्ञान या इरादा रखते हुए उसे किया हो (यदि वह होश में होता)।

हालांकि, इसका एक महत्वपूर्ण अपवाद भी है जब नशा अनैच्छिक रूप से हुआ हो। दरअसल, BNS की धारा 24 यह स्पष्ट करती है कि जब किसी अपराध के लिए विशेष मानसिक तत्व आवश्यक हो, तब नशे की स्थिति को कैसे देखा जाए। इसका उद्देश्य यह संतुलन बनाना है कि व्यक्ति को उसके कार्यों की जिम्मेदारी दी जाए, लेकिन साथ ही यह भी समझा जाए कि नशे की हालत उसकी अपनी मर्ज़ी से नहीं हुई थी। BNS की यह धारा 24 भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 86 का उत्तराधिकारी और समतुल्य है, जिससे इस कानूनी सिद्धांत की निरंतरता बनी रहती है।

इस लेख में आप जानेंगे:

  • BNS की धारा 24 की सरल व्याख्या।
  • मुख्य विवरण।
  • व्यावहारिक उदाहरण।

कानूनी प्रावधान

BNS की धारा 24 ‘ऐसे अपराध जिनमें विशेष इरादा या ज्ञान आवश्यक हो, यदि नशे की हालत में किए जाएं’ के बारे में कहती है:

ऐसे मामलों में जहां कोई कार्य तब तक अपराध नहीं माना जाएगा जब तक वह विशेष ज्ञान या इरादे से न किया गया हो, यदि कोई व्यक्ति वह कार्य नशे की अवस्था में करता है, तो उसे ऐसे माना जाएगा जैसे उसके पास वही ज्ञान होता जैसा उसके पास तब होता जब वह नशे में न होता, जब तक कि नशे की वस्तु उसे उसकी जानकारी के बिना या उसकी इच्छा के विरुद्ध न दी गई हो।

सरल व्याख्या

BNS की धारा 24 उन परिस्थितियों से जुड़ी है जहां कोई व्यक्ति ऐसा कार्य करता है जो केवल तभी अपराध बनता है जब वह कार्य इरादे या ज्ञान के साथ किया गया हो, और उस समय व्यक्ति नशे में था। इस प्रावधान के अनुसार, यदि व्यक्ति ऐसा कार्य नशे में करता है, तो कानून मान लेता है कि उस व्यक्ति के पास वैसा ही इरादा या ज्ञान था जैसा उसके पास तब होता जब वह नशे में न होता।

हालांकि, इसका एक विशेष अपवाद है — जब व्यक्ति जानबूझकर या स्वेच्छा से नशे में नहीं आया (उदाहरण के लिए, किसी ने उसे धोखे से शराब या नशीला पदार्थ पिला दिया)। यदि व्यक्ति अनजाने में नशे में आया है, तो कानून उसे ऐसा मानता है जैसे उसने जानबूझकर नशा नहीं किया, और वह व्यक्ति आवश्यक इरादा या ज्ञान बनाने में असमर्थ हो सकता है।

मुख्य रूप से, यह धारा व्यक्ति को यह कहकर बचने से रोकती है कि वह नशे में था, जब तक कि अपराध विशेष रूप से ज्ञान या इरादे पर आधारित न हो और नशा स्वेच्छिक न हो।

मुख्य विवरण

विशेषता

विवरण

लागूता

उन अपराधों पर लागू होता है जहां विशेष ज्ञान या इरादा आवश्यक तत्व हो।

सामान्य नियम (स्वैच्छिक नशा)

यदि कोई व्यक्ति नशे की हालत में ऐसा कार्य करता है, तो उसे ऐसे माना जाएगा जैसे उसके पास वही ज्ञान था जो होश में होने पर होता। स्वैच्छिक नशा आमतौर पर आवश्यक मानसिक स्थिति को नकारने के लिए एक वैध बचाव नहीं होता।

मुख्य अपवाद (अनैच्छिक नशा)

यदि नशे की स्थिति व्यक्ति की जानकारी के बिना या उसकी इच्छा के विरुद्ध उत्पन्न हुई हो, तो सामान्य नियम लागू नहीं होता। अदालत उस व्यक्ति की वास्तविक मानसिक स्थिति पर विचार करेगी।

जांच का केंद्रबिंदु

मुख्य रूप से यह देखा जाएगा कि क्या अपराध में विशेष ज्ञान या इरादा आवश्यक है, और नशा स्वैच्छिक था या अनैच्छिक।

सबूत का भार (अनैच्छिक नशा)

आमतौर पर यह आरोपी पर होता है कि वह यह साबित करे कि नशा अनैच्छिक था।

IPC के समकक्ष BNS प्रावधान

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 86।

मूल सिद्धांत

स्वैच्छिक कार्यों के परिणामों के लिए व्यक्ति को जिम्मेदार ठहराता है, जिसमें स्वैच्छिक नशा भी शामिल है, और साथ ही उन लोगों की सुरक्षा करता है जिनका नशा उनकी मर्ज़ी से नहीं था।

BNS धारा 24 को स्पष्ट करने वाले व्यावहारिक उदाहरण

कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं:

उदाहरण 1 (स्वैच्छिक नशा - चोरी)

रमेश स्वेच्छा से अत्यधिक शराब पीता है और अपने पड़ोसी के घर में घुसकर एक कीमती घड़ी ले लेता है, यह सोचकर कि वह घड़ी उसकी अपनी है। चोरी में "बेईमानी का इरादा" आवश्यक होता है। BNS धारा 24 के अनुसार, चूंकि रमेश ने जानबूझकर शराब पी थी, इसलिए उसे ऐसा माना जाएगा जैसे उसे पता था कि घड़ी पड़ोसी की है। इसलिए, भले ही वह नशे में था और गलती से समझ बैठा, फिर भी उस पर चोरी का दोष बन सकता है। सिर्फ यह सोच लेना कि घड़ी उसकी है, उसके बेईमानी के इरादे को पूरी तरह नकारता नहीं है।

उदाहरण 2 (स्वैच्छिक नशा - हत्या)

प्रिया, स्वेच्छा से नशे की हालत में, अपने पति से झगड़ा करती है और गुस्से में उसे चाकू मार देती है जिससे उसकी मौत हो जाती है। हत्या में यह आवश्यक होता है कि मृत्यु करने का इरादा हो या मृत्यु की संभावना का ज्ञान हो। मान लीजिए प्रिया इतनी नशे में थी कि उसे यह पता ही नहीं था कि वह क्या कर रही है, तब भी BNS धारा 24 के तहत उसे ऐसा माना जाएगा जैसे वह होश में थी और उसे अपने कार्य का इरादा या परिणाम का ज्ञान था। इसलिए, नशा उसकी मानसिक जिम्मेदारी को खत्म नहीं करेगा।

मुख्य सुधार और परिवर्तन: IPC धारा 86 से BNS धारा 24 तक

IPC की धारा 86 और BNS की धारा 24 के बीच भाषा या कानूनी सिद्धांत में कोई वास्तविक अंतर नहीं है। केवल धारा संख्या बदली गई है क्योंकि नया दंड संहिता ढांचा लागू हुआ है। इसलिए "परिवर्तन और सुधार" की बजाय यह कहना उपयुक्त होगा कि BNS धारा 24, IPC धारा 86 की निरंतरता है। इसका मतलब है कि नशे की हालत में मानसिक जिम्मेदारी से जुड़ा जो कानूनी सिद्धांत पहले से अस्तित्व में था, वह अब नए कानून में भी जारी रहेगा।

निष्कर्ष

BNS धारा 24, जो IPC की धारा 86 के समतुल्य है, ऐसे अपराधों में नशे की स्थिति में दोष तय करने का मुख्य सिद्धांत बताती है जहां आरोपी के इरादे या ज्ञान की आवश्यकता होती है। इसका आशय यह है कि स्वैच्छिक नशा आमतौर पर किसी व्यक्ति को मानसिक जिम्मेदारी से मुक्त नहीं करता। ऐसे मामलों में व्यक्ति को ऐसा माना जाएगा कि उसने वह ज्ञान या इरादा रखा जो होश में होने पर होता।

हालांकि, इसमें एक महत्वपूर्ण अपवाद यह है कि यदि नशा अनैच्छिक था — जैसे व्यक्ति को उसकी जानकारी के बिना शराब या नशीला पदार्थ दिया गया हो — तो अदालत को उस व्यक्ति की वास्तविक मानसिक स्थिति पर विचार करना होगा। यह प्रावधान एक संतुलन बनाता है, जहां व्यक्ति को उसके कार्यों की जिम्मेदारी दी जाती है, लेकिन साथ ही माना जाता है कि जब नशा व्यक्ति की मर्जी के बिना हुआ हो, तो उसकी जिम्मेदारी कम हो सकती है। BNS में "नशा" शब्द पर विशेष जोर इस सिद्धांत के महत्व को दोहराता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

कुछ सामान्य प्रश्न इस प्रकार हैं:

प्रश्न 1: IPC की धारा 86 को संशोधित करके BNS की धारा 24 क्यों बनाई गई?

IPC की धारा 86 को मौलिक रूप से संशोधित नहीं किया गया है। भारतीय न्याय संहिता (BNS) के लागू होने के साथ, भारत के आपराधिक कानूनों का संपूर्ण पुनर्गठन हुआ है और IPC को पूरी तरह से बदल दिया गया है। इसी प्रक्रिया के तहत IPC की सभी धाराओं को BNS में दोबारा क्रमांकित और पुनःकोडित किया गया है। BNS की धारा 24 उसी कानूनी सिद्धांत को दर्शाती है जो पहले IPC की धारा 86 में था।

प्रश्न 2: IPC की धारा 86 और BNS की धारा 24 में मुख्य अंतर क्या हैं?

मुख्य अंतर केवल धारा संख्या का है। नशे की हालत में किए गए ऐसे अपराधों के लिए जिसमें विशिष्ट इरादा या ज्ञान आवश्यक हो, दोष तय करने का जो कानूनी सिद्धांत IPC की धारा 86 में था, वही सिद्धांत BNS की धारा 24 में भी है। भाषा और भाव दोनों समान हैं।

प्रश्न 3: क्या BNS की धारा 24 के अंतर्गत अपराध जमानती है या गैर-जमानती?

BNS की धारा 24 स्वयं में कोई अपराध परिभाषित नहीं करती। यह एक कानूनी सिद्धांत है जो यह तय करता है कि नशे की स्थिति में किसी व्यक्ति की जिम्मेदारी कैसे तय की जाएगी। किसी अपराध के जमानती या गैर-जमानती होने का निर्धारण उस विशिष्ट अपराध पर निर्भर करता है, और यह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) के तहत तय होता है।

प्रश्न 4: BNS की धारा 24 के तहत किए गए अपराध की सजा क्या है?

BNS की धारा 24 किसी विशेष सजा का प्रावधान नहीं करती। नशे की हालत में किया गया कोई अपराध जिस धारा में परिभाषित है, उसी के अनुसार सजा दी जाती है। धारा 24 केवल यह तय करती है कि नशा उस अपराध में मानसिक स्थिति को किस हद तक प्रभावित करता है।

प्रश्न 5: क्या BNS की धारा 24 के तहत कोई जुर्माना लगाया जाता है?

BNS की धारा 24 खुद में कोई जुर्माना नहीं लगाती। अगर किसी अपराध में जुर्माना निर्धारित है, तो वह उस अपराध की संबंधित धारा के अंतर्गत आता है, जहां नशे की स्थिति को ध्यान में रखते हुए धारा 24 लागू की जाती है।

प्रश्न 6: क्या BNS की धारा 24 के अंतर्गत अपराध संज्ञेय (Cognizable) है या असंज्ञेय (Non-Cognizable)?

BNS की धारा 24 किसी अपराध को परिभाषित नहीं करती, बल्कि यह बताती है कि नशे की स्थिति में अपराधी की जिम्मेदारी कैसे तय होगी। अपराध संज्ञेय है या असंज्ञेय, यह उस विशिष्ट अपराध की प्रकृति पर निर्भर करता है, और BNSS (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता) के तहत निर्धारित किया जाता है।

प्रश्न 7: IPC की धारा 86 के लिए BNS में कौन सी धारा समान है?

BNS की धारा 24, IPC की धारा 86 की सीधी और पूरी तरह समान धारा है। दोनों का भाषा, उद्देश्य और कानूनी सिद्धांत समान है — यानी नशे की स्थिति में किए गए अपराधों की जिम्मेदारी को लेकर। केवल धारा संख्या बदली है।