सीआरपीसी
CrPC Section 205 – Magistrate May Dispense With Personal Attendance Of Accused

1.1. “धारा 205 – मजिस्ट्रेट आरोपी की व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट दे सकता है”
2. CrPC की धारा 205 की व्याख्या 3. धारा 205 के मुख्य पहलू 4. CrPC की धारा 205 पर प्रमुख न्यायालयीन निर्णय4.1. टी.जी.एन. कुमार बनाम केरल राज्य एवं अन्य (2011)
4.2. पुनीत डालमिया बनाम केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो, हैदराबाद (2019)
4.3. डॉ. हेमांगिनी मेहर बनाम संगीता नाइक व अन्य (2023)
4.4. नवल कुमार कनोड़िया एवं अन्य बनाम झारखंड राज्य एवं अन्य (2023)
4.5. शरीफ अहमद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (2024)
5. CrPC की धारा 205 के व्यावहारिक प्रभाव 6. CrPC की धारा 205 की सीमाएँ 7. निष्कर्षभारत में, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (जिसे आगे “CrPC” कहा गया है), एक व्यापक कानून है जो आपराधिक कानून के प्रशासन के लिए प्रक्रिया संबंधी ढांचा प्रदान करता है। CrPC की धारा 205 मजिस्ट्रेट को यह अधिकार देती है कि वह सुनवाई के दौरान आरोपी की व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट दे सकता है। यह प्रावधान मजिस्ट्रेट को विवेकाधीन शक्ति प्रदान करता है कि वह विशेष परिस्थितियों में आरोपी को अदालत में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने से छूट दे और उसके स्थान पर वकील के माध्यम से पेश होने की अनुमति दे।
CrPC की धारा 205 का विधिक प्रावधान
“धारा 205 – मजिस्ट्रेट आरोपी की व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट दे सकता है”
- जब भी कोई मजिस्ट्रेट समन जारी करता है, तो यदि उसे उचित कारण दिखे, तो वह आरोपी को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने से छूट दे सकता है और उसे अपने वकील के माध्यम से पेश होने की अनुमति दे सकता है।
- लेकिन मामले की जांच या सुनवाई कर रहा मजिस्ट्रेट किसी भी समय आरोपी की व्यक्तिगत उपस्थिति का निर्देश दे सकता है, और यदि आवश्यक हो, तो उसे बलपूर्वक उपस्थित कराने का आदेश भी दे सकता है।
CrPC की धारा 205 की व्याख्या
- धारा 205(1): आरोपी की व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट: इस प्रावधान के अनुसार मजिस्ट्रेट आरोपी को समन जारी करते समय यह तय कर सकता है कि क्या उसकी व्यक्तिगत उपस्थिति आवश्यक है या नहीं। यदि उसे उचित लगता है, तो वह आरोपी को अपने वकील के माध्यम से उपस्थित होने की अनुमति दे सकता है। यह छूट उन मामलों में उपयोगी होती है जहाँ अपराध साधारण हो, या आरोपी की उपस्थिति स्वास्थ्य, दूरी या अन्य वैध कारणों से संभव न हो।
यह निर्णय मजिस्ट्रेट के विवेक पर आधारित होता है, जिसमें वह मामले की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए तय करता है कि क्या वकील के माध्यम से उपस्थिति ही न्यायपूर्ण सुनवाई के लिए पर्याप्त होगी।
- धारा 205(2): आरोपी की व्यक्तिगत उपस्थिति का निर्देश: इस प्रावधान के अनुसार आरोपी को दी गई छूट पूर्ण नहीं है। मजिस्ट्रेट किसी भी समय यह निर्देश दे सकता है कि आरोपी को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना चाहिए, और यदि ज़रूरी हो तो उसे बलपूर्वक उपस्थित कराया जा सकता है।
यह खंड यह सुनिश्चित करता है कि प्रक्रिया में लचीलापन होने के बावजूद, यदि न्याय की आवश्यकता हो तो अदालत आरोपी को बुला सकती है।
धारा 205 के मुख्य पहलू
- न्यायिक विवेक और औचित्य: आरोपी को व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट मिलना उसका अधिकार नहीं बल्कि मजिस्ट्रेट द्वारा विवेक के आधार पर दी जाने वाली सुविधा है। इस निर्णय में निम्नलिखित कारकों पर विचार किया जाता है:
- अपराध की गंभीरता: साधारण अपराधों में यह छूट आसानी से दी जा सकती है, गंभीर मामलों में नहीं।
- आरोपी की स्थिति: यदि आरोपी बीमार हो, बुज़ुर्ग हो या अदालत से बहुत दूर रहता हो, तो मजिस्ट्रेट उसे छूट दे सकता है।
- प्रक्रिया का चरण: प्रारंभिक चरण में आरोपी की उपस्थिति उतनी आवश्यक नहीं होती जितनी कि गवाही या जिरह के समय।
- जब व्यक्तिगत उपस्थिति आवश्यक हो: धारा 205 के अंतर्गत लचीलापन होने के बावजूद, यदि आरोपी की उपस्थिति आवश्यक हो तो अदालत उसे बुला सकती है, जैसे कि:
- गवाही दर्ज करना या गवाह की जांच: यदि अदालत को लगता है कि आरोपी का व्यवहार मामले के निर्णय में सहायक हो सकता है।
- अदालत के आदेशों का पालन या स्पष्टीकरण: कुछ मामलों में आरोपी से सीधे स्पष्टीकरण लेने की ज़रूरत होती है।
- वकील की भूमिका: धारा 205 के तहत आरोपी की ओर से पेश होने वाला वकील निम्नलिखित ज़िम्मेदारियों को निभाता है:
- अदालत में नियमित रूप से पेश होना।
- आरोपी को केस की प्रगति की जानकारी देना।
- अदालत के निर्देशों या आदेशों का अनुपालन सुनिश्चित करना।
CrPC की धारा 205 पर प्रमुख न्यायालयीन निर्णय
टी.जी.एन. कुमार बनाम केरल राज्य एवं अन्य (2011)
CrPC की धारा 205 के संदर्भ में न्यायालय ने निम्नलिखित बातें कही:
- धारा 205 CrPC मजिस्ट्रेट को आरोपी को व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होने से छूट देने का अधिकार देती है।
- यह छूट मजिस्ट्रेट द्वारा मामले की प्रकृति और आरोपी के आचरण को देखते हुए दी जा सकती है।
- यह विवेकाधिकार हाईकोर्ट के निर्देशों द्वारा सीमित नहीं किया जा सकता।
- मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेश ऐसा होना चाहिए जो आरोपी को अनावश्यक उत्पीड़न से बचाए, शिकायतकर्ता के हितों की रक्षा करे और मुकदमे में देरी न हो।
पुनीत डालमिया बनाम केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो, हैदराबाद (2019)
इस मामले में, न्यायालय ने CrPC की धारा 205 के दायरे और सीमा की व्याख्या की। न्यायालय ने कहा कि यदि न्यायालय को लगे कि आरोपी की उपस्थिति से न्याय में सहूलियत नहीं होगी, तो उसकी उपस्थिति से छूट दी जा सकती है।
यदि आरोपी की उपस्थिति बहुत कठोर परिणाम ला सकती है, तो न्यायालय अभियोजन कार्यवाही से उसे राहत दे सकता है। लेकिन यदि छूट दी जाती है, तो उसके वकील की उपस्थिति अनिवार्य होगी और साक्ष्य उसकी अनुपस्थिति में लिए जा सकते हैं।
न्यायालय ने आरोपी को छूट देते समय निम्नलिखित सावधानियों को आवश्यक बताया:
- आरोपी को यह आश्वासन देना होगा कि वह अपनी पहचान को विवादित नहीं करेगा।
- आरोपी का वकील अदालत में मौजूद होना चाहिए।
- आरोपी को इस बात पर सहमत होना चाहिए कि साक्ष्य उसकी अनुपस्थिति में लिए जा सकते हैं।
डॉ. हेमांगिनी मेहर बनाम संगीता नाइक व अन्य (2023)
इस मामले में न्यायालय ने CrPC की धारा 205 को लेकर निम्नलिखित टिप्पणियाँ कीं:
- विवेकाधीन शक्ति: न्यायालय ने कहा कि भले ही धारा 205 मजिस्ट्रेट को आरोपी की व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट देने का विवेकाधिकार देती है, यह शक्ति मनमाने ढंग से नहीं अपनाई जानी चाहिए। इसे मामले की परिस्थितियों, आरोपी की स्थिति और आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए प्रयोग किया जाना चाहिए।
- सार्वजनिक कर्तव्य और व्यक्तिगत उपस्थिति का संतुलन: यदि आरोपी कोई सार्वजनिक सेवक हो, तो अदालत को जनहित और कानून के अनुपालन के बीच संतुलन बनाना चाहिए।
- छूट देने के मानदंड: न्यायालय ने छूट प्रदान करने हेतु कुछ महत्वपूर्ण आधार बताए:
- अपराध की प्रकृति: यदि अपराध गंभीर न हो तो छूट दी जा सकती है।
- संभावित कठिनाई: यदि उपस्थिति आरोपी के व्यवसाय या कर्तव्य में बाधा उत्पन्न करती हो।
- कमजोर स्थिति: जैसे कि महिलाओं आदि को प्रक्रिया में कुछ लचीलापन दिया जा सकता है।
- सार्वजनिक सेवा: इस मामले में अपीलकर्ता एक सरकारी महिला चिकित्सक थीं और अस्पताल में उनकी उपस्थिति आवश्यक थी।
- उपस्थिति से छूट देने की शर्तें: न्यायालय ने निम्नलिखित शर्तों के अधीन छूट देने की अनुमति दी:
- वकील के माध्यम से उपस्थिति: अपीलकर्ता का वकील पूरे कार्यवाही के दौरान उपस्थित रहेगा।
- साक्ष्य पर कोई आपत्ति नहीं: आरोपी साक्ष्य को उसकी अनुपस्थिति में लिए जाने पर आपत्ति नहीं करेगा।
- आवश्यक होने पर उपस्थिति: जब भी अदालत आवश्यक समझे, आरोपी को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना होगा।
नवल कुमार कनोड़िया एवं अन्य बनाम झारखंड राज्य एवं अन्य (2023)
इस मामले में न्यायालय ने CrPC की धारा 205 की व्याख्या की, जो आरोपी की व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट से संबंधित है। न्यायालय ने माना कि यद्यपि यह धारा अदालत को विवेकाधीन अधिकार देती है, लेकिन इसका प्रयोग विशेष रूप से वारंट ट्रायल मामलों में सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली का सुचारु संचालन प्राथमिक उद्देश्य होना चाहिए।
आरोपी की उपस्थिति केवल उपस्थिति के लिए नहीं बल्कि मुकदमे की प्रगति सुनिश्चित करने के लिए होती है। यदि बिना उपस्थिति के मुकदमा आगे बढ़ सकता है, तो न्यायालय आरोपी की कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए छूट दे सकता है। न्यायालय ने यह भी कहा कि धारा 205 के तहत दी गई छूट से आरोपी को अनावश्यक परेशान नहीं किया जाना चाहिए, न ही इससे शिकायतकर्ता को नुकसान होना चाहिए और न ही इससे मुकदमे में देरी होनी चाहिए।
शरीफ अहमद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (2024)
इस मामले में न्यायालय ने कहा कि CrPC की धारा 205 के तहत उपस्थिति से छूट केवल जमानत मिलने के बाद ही उपलब्ध नहीं होती। मजिस्ट्रेट समन जारी करते समय ही अपने विवेक से आरोपी को वकील के माध्यम से पेश होने की अनुमति दे सकता है। न्यायालय ने निम्नलिखित बिंदु स्पष्ट किए:
- हालाँकि CrPC व्यापक है, फिर भी कुछ स्थितियाँ ऐसी हो सकती हैं जहाँ स्पष्ट प्रावधान न हों। ऐसे मामलों में न्यायालय न्याय के हित में आदेश पारित कर सकता है।
- न्यायालय ने मनेका संजय गांधी बनाम रानी जेतमलानी (1978) पर भरोसा करते हुए कहा कि यदि मामला उपयुक्त हो, तो व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट उदारता से दी जानी चाहिए।
- न्यायालय ने कहा कि हर ऐसी प्रक्रिया जो न्यायसंगत और निष्पक्ष हो, उसे वैध माना जाना चाहिए जब तक कि वह कानून द्वारा स्पष्ट रूप से निषिद्ध न हो।
उपरोक्त सिद्धांतों के आधार पर न्यायालय ने कहा कि धारा 205 की व्याख्या लचीले ढंग से की जानी चाहिए और यह प्रावधान जमानत मिलने से पहले भी लागू किया जा सकता है।
CrPC की धारा 205 के व्यावहारिक प्रभाव
- असुविधा झेल रहे व्यक्तियों के लिए राहत: धारा 205 उन व्यक्तियों को बड़ी राहत प्रदान करती है जिन्हें लगातार अदालत में उपस्थित होना कठिन हो सकता है। यह विशेष रूप से निम्नलिखित मामलों में सहायक होती है:
- वरिष्ठ नागरिक या विकलांग व्यक्ति।
- दूर-दराज के क्षेत्रों में रहने वाले या विदेश में रहने वाले व्यक्ति।
- जनप्रतिनिधि, व्यवसायी, या अत्यधिक व्यस्त पेशेवर।
- उत्पीड़न और दबाव से बचाव: यह प्रावधान न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग से बचाने में सहायक है, जहाँ बार-बार अदालत में बुलाकर आरोपी को परेशान किया जा सकता है। इससे आरोपी अपनी रक्षा पर ध्यान केंद्रित कर सकता है।
- न्यायिक प्रक्रिया की दक्षता: आरोपी को वकील के माध्यम से पेश होने की अनुमति देकर यह प्रावधान अदालतों की कार्यवाही को अधिक उत्पादक बनाता है। इससे अदालतों में भीड़ कम होती है और मामूली मामलों में बेवजह की देरी टाली जा सकती है।
CrPC की धारा 205 की सीमाएँ
हालाँकि धारा 205 लचीलापन प्रदान करती है, फिर भी इसमें कुछ सीमाएँ हैं:
- दुरुपयोग की संभावना: आरोपी इस प्रावधान का दुरुपयोग कर सकता है ताकि नियमित रूप से अदालत में उपस्थित न होना पड़े, जिससे न्याय में देरी हो सकती है।
- निरंतर न्यायिक निगरानी की आवश्यकता: मजिस्ट्रेट को सावधानीपूर्वक यह सुनिश्चित करना होगा कि यह छूट न्याय प्रक्रिया में बाधा न बने।
- आदेशों के क्रियान्वयन में कठिनाई: यदि किसी स्थिति में आरोपी की उपस्थिति आवश्यक हो और वह अनुपस्थित हो, तो न्यायालय के आदेशों को लागू करना कठिन हो सकता है।
निष्कर्ष
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 205 आपराधिक न्याय प्रशासन की प्रक्रिया में एक प्रभावी साधन है। यह अदालत की प्रक्रिया की मांगों और आरोपी के अधिकारों व सुविधा के बीच संतुलन बनाने का प्रयास करती है। इस धारा के तहत मजिस्ट्रेट को यह अधिकार प्राप्त है कि वह आरोपी को वकील के माध्यम से पेश होने की अनुमति दे, और जब आवश्यक हो तब उसे व्यक्तिगत रूप से बुला सके। यह दोहरा दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि अदालतें निष्पक्ष और कुशल बनी रहें—जहाँ आरोपी के वैध हितों को संरक्षण मिलता है और न्याय की प्रक्रिया भी बाधित नहीं होती।