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तलाक गुजारा भत्ता क्या है?

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1. तलाक गुजारा भत्ता क्या है? 2. भारत में तलाक गुजारा भत्ता के प्रकार

2.1. अलगाव गुजारा भत्ता (Separation Alimony)

2.2. स्थायी गुजारा भत्ता (Permanent Alimony)

2.3. पुनर्वास गुजारा भत्ता (Rehabilitative Alimony)

2.4. एकमुश्त गुजारा भत्ता (Lump-sum Alimony)

3. भारत में गुजारा भत्ता से संबंधित कानून

3.1. हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 25:

3.2. मुस्लिम महिला (तलाक के अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 3:

3.3. भारतीय तलाक अधिनियम, 1869 (ईसाई समुदाय के लिए)

3.4. पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1988

3.5. विशेष विवाह अधिनियम, 1954

4. गुजारा भत्ता की पात्रता और इसके लिए आवश्यक साक्ष्य

4.1. वित्तीय आवश्यकता दिखाना:

4.2. आय का प्रमाण:

4.3. व्यवसायिक आय:

4.4. निर्भर व्यक्तियों की देखभाल:

4.5. बच्चों का खर्च:

5. भारत में गुजारा भत्ता की गणना कैसे की जाती है? 6. गुजारा भत्ता निर्धारित करने में विचार किए जाने वाले कारक

6.1. विवाह की अवधि:

6.2. दोनों जीवनसाथियों की आय और कमाई की संभावना:

6.3. विवाह के दौरान स्थापित जीवनशैली:

6.4. दोनों की आयु और स्वास्थ्य:

6.5. दोनों की वित्तीय संपत्ति और संसाधन:

6.6. निर्भर बच्चों की ज़रूरतें:

6.7. वैवाहिक कदाचार:

7. गुजारा भत्ता का भुगतान कैसे किया जाता है? 8. तलाक गुजारा भत्ता पर कर देयता (Taxability) 9. गुजारा भत्ता में संशोधन और समाप्ति

9.1. संशोधन (Modification):

9.2. समाप्ति (Termination):

10. भारत में गुजारा भत्ता से संबंधित महत्वपूर्ण नियम और विचार

10.1. गुजारा भत्ता मांगने वाले जीवनसाथियों के लिए नियम

10.2. भारत में गुजारा भत्ता भुगतान करने वाले जीवनसाथियों के लिए नियम

11. निष्कर्ष 12. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

12.1. 1. क्या पति को तब भी गुजारा भत्ता देनी होती है जब पत्नी कमा रही हो?

12.2. 2. क्या पत्नी के दोबारा शादी करने पर भी पति को गुजारा भत्ता देनी पड़ती है?

12.3. 3. क्या पत्नी के कमा रहे होने पर भी पति को गुजारा भत्ता देनी पड़ती है?

12.4. 4. भारत में गुजारा भत्ता पाने के लिए विवाह की कितनी अवधि होनी चाहिए?

12.5. 5. क्या महिला के पुनर्विवाह करने पर भी पति को गुजारा भत्ता देनी होती है?

12.6. 6. अगर गुजारा भत्ता देने वाला व्यक्ति भुगतान नहीं करता तो क्या होता है?

12.7. 7. क्या मैं एक बार में पूरी गुजारा भत्ता की मांग कर सकता/सकती हूं?

12.8. 8. क्या भारत में गुजारा भत्ता पर टैक्स लगता है?

12.9. 9. भारत में गुजारा भत्ता कितने समय तक चलती है?

तलाक निस्संदेह एक चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया होती है, जो दोनों पक्षों की वित्तीय और भावनात्मक स्थिति पर गहरा प्रभाव डाल सकती है। तलाक के दौरान उठने वाले सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक है गुजारा भत्ता का प्रश्न, जिसका अर्थ है वह वित्तीय सहायता जो एक जीवनसाथी को विवाह समाप्त होने के बाद दूसरे को प्रदान करनी पड़ सकती है।

हालांकि, भारत में गुजारा भत्ता से संबंधित कानून जीवनसाथियों के धर्म और उनके व्यक्तिगत कानूनों के आधार पर अलग-अलग हो सकते हैं। इस ब्लॉग में हम भारत में तलाक के दौरान गुजारा भत्ता से संबंधित विभिन्न कानूनों का गहराई से विश्लेषण करेंगे, जिसमें यह शामिल होगा कि कोर्ट किन कारकों पर विचार करता है और गुजारा भत्ता की गणना कैसे की जाती है। इस लेख के अंत तक, आप तलाक गुजारा भत्ता से जुड़ी हर बात को बेहतर तरीके से समझ सकेंगे।

तलाक गुजारा भत्ता क्या है?

गुजारा भत्ता एक कानूनी शब्द है जो लैटिन शब्द 'Alimonia' से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है 'पालन-पोषण'। सरल शब्दों में, यह उस वित्तीय सहायता को दर्शाता है जो एक जीवनसाथी द्वारा दूसरे को तलाक या अलगाव के बाद प्रदान की जाती है।

भारत में परंपरागत रूप से पति को तलाक के दौरान और बाद में पत्नी को गुजारा भत्ता प्रदान करने की जिम्मेदारी दी जाती है, जिसमें बच्चों की शिक्षा और भलाई के लिए सहायता शामिल होती है। हालांकि, गुजारा भत्ता कोई पूर्ण अधिकार नहीं है; कोर्ट प्रत्येक मामले की परिस्थितियों के आधार पर गुजारा भत्ता का निर्णय करता है।

गुजारा भत्ता तलाक में रखरखाव कानून का हिस्सा होती है, जो विवाह के दौरान अपनाई गई धार्मिक परंपराओं के अनुसार भिन्न होती है। यह जानना महत्वपूर्ण है कि गुजारा भत्ता का उद्देश्य तलाकशुदा दंपत्ति के आर्थिक स्तर को बराबर करना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि दोनों जीवनसाथी अपनी न्यूनतम आर्थिक ज़रूरतें पूरी कर सकें।

यह भी उल्लेखनीय है कि जीवनसाथी रखरखाव (spousal maintenance) केवल पूर्व पत्नियों तक सीमित नहीं है। कई राज्यों में लिंग-तटस्थ तलाक कानून अपनाए गए हैं, जिसके अनुसार कुछ मामलों में महिलाओं को भी अपने पूर्व पति को गुजारा भत्ता देनी पड़ सकती है।

भारत में तलाक गुजारा भत्ता के प्रकार

भारत में तलाक के दौरान दी जाने वाली गुजारा भत्ता के कई प्रकार होते हैं, जिनमें से प्रत्येक की अपनी विशेषताएं होती हैं। नीचे सबसे सामान्य प्रकार दिए गए हैं:

अलगाव गुजारा भत्ता (Separation Alimony)

यह गुजारा भत्ता उस स्थिति में दी जाती है जब तलाक की प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हुई होती है और पति-पत्नी अलग रहने का निर्णय लेते हैं। कोर्ट आर्थिक रूप से सक्षम जीवनसाथी को आदेश दे सकता है कि वह असक्षम जीवनसाथी को आर्थिक सहायता प्रदान करे। यह सहायता तलाक स्वीकृत या अस्वीकृत होने तक जारी रहती है। यदि तलाक स्वीकृत हो जाता है, तो यह गुजारा भत्ता किसी अन्य प्रकार में बदल जाती है।

स्थायी गुजारा भत्ता (Permanent Alimony)

जैसा कि नाम से स्पष्ट है, यह गुजारा भत्ता तलाक के बाद दी जाती है और तब तक चलती है जब तक कि प्राप्तकर्ता की मृत्यु न हो जाए या वह पुनर्विवाह न कर ले। यह आमतौर पर उस जीवनसाथी को दी जाती है जिसे काम करने का कोई अनुभव नहीं है या जिसने शादी के बाद काम छोड़ दिया हो और जिसकी कोई वित्तीय सहायता नहीं है।

पुनर्वास गुजारा भत्ता (Rehabilitative Alimony)

यह गुजारा भत्ता परिस्थितियों पर निर्भर करती है और तब समाप्त होती है जब प्राप्तकर्ता आत्मनिर्भर बन जाता है या स्वयं और अपने बच्चों का भरण-पोषण करने का उपाय खोज लेता है।

एकमुश्त गुजारा भत्ता (Lump-sum Alimony)

यह एकमुश्त राशि होती है जो जीवनसाथी को पालन-पोषण और रखरखाव के लिए दी जाती है। यह मासिक भुगतान के विपरीत एक बार में दी जाती है और इसकी राशि प्राप्तकर्ता की संपत्ति और स्थिति पर निर्भर करती है।

भारत में गुजारा भत्ता से संबंधित कानून

भारत में गुजारा भत्ता कानून तलाकशुदा जीवनसाथियों के धर्म के अनुसार अलग-अलग होते हैं। ये कानून आमतौर पर उस जीवनसाथी को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए बनाए गए हैं जो तलाक के बाद खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ होता है। नीचे भारत में लागू प्रमुख गुजारा भत्ता कानूनों की जानकारी दी गई है:

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 25:

इस कानून के तहत, कोई भी जीवनसाथी तलाक की प्रक्रिया के दौरान या तलाक के बाद गुजारा भत्ता की मांग कर सकता है। गुजारा भत्ता की राशि कोर्ट द्वारा विभिन्न कारकों—जैसे दोनों पक्षों की आय और वित्तीय स्थिति, विवाह की अवधि, उम्र और स्वास्थ्य, तथा विवाह के दौरान जीवनशैली—के आधार पर तय की जाती है।

मुस्लिम महिला (तलाक के अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 3:

इस अधिनियम की धारा 3 के तहत, तलाकशुदा मुस्लिम महिला को 'इद्दत' की अवधि (जो तलाक के बाद लगभग तीन महीने होती है) तक भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार होता है।

पूर्व पति को उसका भरण-पोषण तब तक करना होता है जब तक वह पुनर्विवाह न कर ले या जीवनभर के लिए, कोर्ट के निर्णय के अनुसार।

इस अधिनियम की धारा 3(1)(b) के तहत तलाकशुदा मुस्लिम महिला को उसका पूर्व पति एक उचित और न्यायसंगत मेहर (dower) प्रदान करने के लिए बाध्य होता है। मेहर वह धन या संपत्ति होती है जो विवाह के समय पति द्वारा पत्नी को सुरक्षा के रूप में दी जाती है।

भारतीय तलाक अधिनियम, 1869 (ईसाई समुदाय के लिए)

यह अधिनियम भारत के ईसाई समुदाय पर लागू होता है और इसमें विवाह विच्छेद और गुजारा भत्ता की व्यवस्था दी गई है। इसकी धाराएं 36, 37, और 38 पत्नी और बच्चों को तलाक के बाद गुजारा भत्ता और रखरखाव प्रदान करने के लिए प्रावधान करती हैं।

धारा 36 में तलाक प्रक्रिया के दौरान और उसके बाद पत्नी के रखरखाव की बात की गई है। धारा 37 बच्चों के रखरखाव से संबंधित है, जबकि धारा 38 कोर्ट को गुजारा भत्ता आदेश में परिवर्तन करने की अनुमति देती है।

पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1988

पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1988 भारत में पारसी समुदाय के विवाह और तलाक को नियंत्रित करता है। इस अधिनियम की धारा 40 तलाक के बाद पत्नी और बच्चों के भरण-पोषण से संबंधित है। यह धारा यह भी प्रावधान करती है कि कोर्ट एक जीवनसाथी से दूसरे जीवनसाथी को संपत्ति हस्तांतरित करने का आदेश दे सकता है — स्थायी रूप से या एक सीमित अवधि के लिए।

विशेष विवाह अधिनियम, 1954

विशेष विवाह अधिनियम, 1954 विवाह विच्छेद के बाद जीवनसाथी को गुजारा भत्ता या भरण-पोषण प्रदान करने की व्यवस्था करता है। इसकी धारा 36 के तहत, कोई भी पक्ष भरण-पोषण या गुजारा भत्ता के लिए आवेदन कर सकता है, और कोर्ट वित्तीय स्थिति और आवश्यकताओं के आधार पर मासिक राशि का आदेश दे सकता है। धारा 37 भरण-पोषण आदेशों के प्रवर्तन से संबंधित है, और धारा 38 बदली हुई परिस्थितियों के आधार पर इन आदेशों में बदलाव या रद्द करने का प्रावधान करती है। कुल मिलाकर, यह अधिनियम सुनिश्चित करता है कि विवाह समाप्त होने के बाद भी जीवनसाथी की आर्थिक ज़रूरतें पूरी की जाएं।

यह भी पढ़ें: भारत में गुजारा भत्ता से कैसे बचें?

गुजारा भत्ता की पात्रता और इसके लिए आवश्यक साक्ष्य

भारत में गुजारा भत्ता, जिसे मेंटेनेंस भी कहा जाता है, उस जीवनसाथी की आवश्यकता और दूसरे जीवनसाथी की भुगतान करने की क्षमता के आधार पर निर्धारित की जाती है। इसमें विवाह की अवधि, जीवनसाथियों की आयु और स्वास्थ्य, और दोनों की वित्तीय स्थिति जैसे कारक शामिल होते हैं।

अगर पत्नी तलाक के बाद स्वयं का आर्थिक रूप से पालन नहीं कर सकती, तो वह गुजारा भत्ता के लिए पात्र हो सकती है। हालांकि, भारत में गुजारा भत्ता से संबंधित कानून क्षेत्राधिकार के अनुसार भिन्न हो सकते हैं और अंतिम निर्णय कोर्ट द्वारा ही लिया जाता है।

पत्नी को गुजारा भत्ता पाने के लिए कोर्ट में कुछ साक्ष्य प्रस्तुत करने होते हैं:

वित्तीय आवश्यकता दिखाना:

गुजारा भत्ता के लिए पात्र माने जाने हेतु यह साबित करना आवश्यक होता है कि संबंधित जीवनसाथी बिना सहायता के आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं हो सकता। इसके लिए मासिक खर्चों के दस्तावेज़ और आय व संपत्ति का प्रमाण प्रस्तुत किया जा सकता है।

आय का प्रमाण:

दूसरे जीवनसाथी की आय का प्रमाण भी जरूरी होता है, जैसे कि आयकर रिटर्न की प्रतियां और वेतन पर्ची।

व्यवसायिक आय:

यदि दूसरा जीवनसाथी व्यवसाय करता है, तो उस व्यवसाय की वित्तीय स्थिति जैसे बैलेंस शीट और लाभ-हानि विवरण प्रस्तुत करना आवश्यक हो सकता है।

निर्भर व्यक्तियों की देखभाल:

यदि माता-पिता या बच्चे जैसे कोई आश्रित व्यक्ति चिकित्सा देखभाल पर निर्भर हैं, तो चिकित्सकीय रिपोर्ट साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत की जा सकती है।

बच्चों का खर्च:

यदि बच्चे उस जीवनसाथी के साथ रहेंगे जिसे गुजारा भत्ता मिल रही है, तो उनके खर्च को भी गुजारा भत्ता की गणना में शामिल किया जाता है।

भारत में गुजारा भत्ता की गणना कैसे की जाती है?

कई लोग मानते हैं कि भारत में गुजारा भत्ता की गणना के लिए कोई निश्चित फॉर्मूला है, लेकिन वास्तव में ऐसा कोई कठोर नियम नहीं है। आमतौर पर गुजारा भत्ता दो तरीकों से दी जाती है — मासिक भुगतान या एकमुश्त राशि के रूप में।

हाल ही में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने पत्नी को दी जाने वाली गुजारा भत्ता की सीमा पति की आय का अधिकतम 25% तय की है। हालांकि, एकमुश्त राशि के लिए कोई निश्चित मानक नहीं है, लेकिन सामान्यतः यह पति की कुल संपत्ति का 1/5 से 1/3 तक होती है।

भारत में गुजारा भत्ता या भरण-पोषण की गणना करते समय निम्नलिखित कारकों पर विचार किया जाता है:

  • पति और पत्नी की आय और कुल संपत्ति
  • टैक्स, ईएमआई और लोन भुगतान जैसी कटौतियाँ
  • पति की जिम्मेदारियाँ जैसे आश्रित माता-पिता या अन्य परिवारजन
  • दोनों पक्षों की जीवनशैली और सामाजिक स्थिति
  • दोनों की स्वास्थ्य स्थिति और आयु
  • विवाह की कुल अवधि
  • बच्चों के पालन-पोषण और भलाई से संबंधित सभी खर्च

उपरोक्त कारकों के आधार पर, कोर्ट यह तय करता है कि किस जीवनसाथी को गुजारा भत्ता दी जानी चाहिए।

गुजारा भत्ता निर्धारित करने में विचार किए जाने वाले कारक

गुजारा भत्ता तय करते समय कई महत्वपूर्ण कारकों पर विचार किया जाता है, जो निम्नलिखित हैं:

विवाह की अवधि:

विवाह जितना लंबा होता है, उतनी अधिक संभावना होती है कि गुजारा भत्ता अधिक समय तक दी जाएगी।

दोनों जीवनसाथियों की आय और कमाई की संभावना:

कोर्ट यह देखता है कि दोनों की वर्तमान आय और भविष्य की कमाई की संभावना कितनी है, और उसी के आधार पर गुजारा भत्ता की राशि व अवधि तय करता है।

विवाह के दौरान स्थापित जीवनशैली:

कोर्ट विवाह के दौरान की जीवनशैली को ध्यान में रखता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि तलाक के बाद भी जीवनसाथी समान स्तर की जीवनशैली बनाए रख सके।

दोनों की आयु और स्वास्थ्य:

यदि कोई जीवनसाथी उम्रदराज़ या बीमार है, तो उसे अधिक वित्तीय सहायता की आवश्यकता हो सकती है। इस पर भी कोर्ट विचार करता है।

दोनों की वित्तीय संपत्ति और संसाधन:

जैसे बचत, निवेश, अचल संपत्ति आदि—कोर्ट यह सब देखता है कि क्या गुजारा भत्ता आवश्यक है।

निर्भर बच्चों की ज़रूरतें:

अगर बच्चे किसी एक जीवनसाथी के साथ रहेंगे, तो उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य आदि की ज़रूरतें भी गुजारा भत्ता निर्धारण में शामिल की जाती हैं।

वैवाहिक कदाचार:

कुछ राज्यों में व्यभिचार जैसे मामलों में, कोर्ट गुजारा भत्ता निर्धारण में इस कारक को भी ध्यान में रखता है।

गुजारा भत्ता का भुगतान कैसे किया जाता है?

आमतौर पर अधिक कमाई करने वाला जीवनसाथी दूसरे को गुजारा भत्ता देता है। यह भुगतान एकमुश्त राशि के रूप में या एक निश्चित समयावधि तक नियमित किस्तों के रूप में किया जा सकता है।

भुगतान की योजना और तरीका कोर्ट द्वारा तय किया जाता है और इसे तलाक समझौते में शामिल किया जा सकता है। यह गुजारा भत्ता के प्रकार पर भी निर्भर करता है:

अस्थायी गुजारा भत्ता: जिसे 'पेंडेंटे लाइट' भी कहा जाता है, यह तलाक की कार्यवाही के दौरान दी जाती है ताकि कम कमाई करने वाला जीवनसाथी अपनी जीवनशैली बनाए रख सके।

पुनर्वास गुजारा भत्ता: यह उस जीवनसाथी को आत्मनिर्भर बनने में सहायता करने के लिए दी जाती है, जब वह शिक्षा या प्रशिक्षण ले रहा हो।

स्थायी गुजारा भत्ता: यह अनिश्चितकाल के लिए दी जाती है, खासकर उन मामलों में जब कोई जीवनसाथी लंबे समय तक कामकाजी क्षेत्र से बाहर रहा हो।

प्रतिपूर्ति गुजारा भत्ता: यह उस जीवनसाथी को दी जाती है जिसने विवाह के दौरान दूसरे जीवनसाथी की शिक्षा या करियर में आर्थिक सहायता की हो।

एकमुश्त गुजारा भत्ता: यह एक ही बार में दी जाती है, नियमित किस्तों की बजाय।

तलाक गुजारा भत्ता पर कर देयता (Taxability)

वर्तमान में, भारत में तलाक के बाद दी जाने वाली गुजारा भत्ता पर आयकर अधिनियम, 1961 के अनुसार कोई स्पष्ट कर व्यवस्था नहीं है। यह इस पर निर्भर करता है कि भुगतान किस प्रकार किया गया है—मासिक या एकमुश्त, और इसे किस रूप में स्थानांतरित किया गया है।

गुजारा भत्ता में संशोधन और समाप्ति

गुजारा भत्ता में संशोधन और समाप्ति का अर्थ है गुजारा भत्ता भुगतान की राशि या अवधि को बदलना या इसे पूरी तरह से समाप्त करना।

संशोधन (Modification):

जब किसी या दोनों पक्षों की वित्तीय स्थिति में बड़ा बदलाव आता है—जैसे नौकरी छूटना, आय में बदलाव या खर्चों में भारी वृद्धि या कमी—तो कोर्ट गुजारा भत्ता की राशि या अवधि को संशोधित कर सकता है ताकि नई परिस्थितियों के अनुरूप फैसला लिया जा सके।

समाप्ति (Termination):

गुजारा भत्ता की समाप्ति तब हो सकती है जब प्राप्तकर्ता जीवनसाथी पुनर्विवाह कर ले, किसी रोमांटिक संबंध में रहने लगे, एक निश्चित आयु प्राप्त कर ले या आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन जाए। कुछ राज्यों में भुगतानकर्ता के सेवानिवृत्त होने या विकलांग हो जाने की स्थिति में भी गुजारा भत्ता समाप्त की जा सकती है।

भारत में गुजारा भत्ता से संबंधित महत्वपूर्ण नियम और विचार

यह समझना महत्वपूर्ण है कि भारत में गुजारा भत्ता से संबंधित नियम इस लेख में उल्लिखित विभिन्न कानूनों के अनुसार भिन्न हो सकते हैं।

गुजारा भत्ता मांगने वाले जीवनसाथियों के लिए नियम

यदि आप भारत में गुजारा भत्ता के लिए आवेदन करने वाले जीवनसाथी हैं, तो नीचे दिए गए नियमों का पालन करना जरूरी है:

  1. उचित कोर्ट में याचिका दायर करें और अपनी वित्तीय आवश्यकताओं और स्थिति के बारे में सटीक और पूरी जानकारी प्रदान करें।
  2. कोर्ट द्वारा मांगे गए किसी भी अतिरिक्त दस्तावेज़ या जानकारी को प्रदान करने में सहयोग करें।
  3. अपनी आय या वित्तीय स्थिति को छिपाने या गलत जानकारी देने की कोशिश न करें।
  4. गुजारा भत्ता की राशि का उपयोग उचित उद्देश्यों के लिए करें, जैसे अपने खर्चों को पूरा करना या बच्चों की देखभाल करना।
  5. यदि गुजारा भत्ता तय होने के बाद आपकी आर्थिक स्थिति में बड़ा बदलाव आता है, तो कोर्ट को सूचित करें और संशोधन के लिए अनुरोध करें।
  6. अगर आप पुनर्विवाह करते हैं या किसी नए रिश्ते में प्रवेश करते हैं, तो यह आपकी गुजारा भत्ता पात्रता को प्रभावित कर सकता है।
  7. आपको कोर्ट के आदेशानुसार विवाह से उत्पन्न बच्चों की देखभाल और शिक्षा का प्रबंध करना होगा।

भारत में गुजारा भत्ता भुगतान करने वाले जीवनसाथियों के लिए नियम

यदि आपको कोर्ट द्वारा गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया गया है, तो नीचे दिए गए नियमों का पालन करें:

  1. गुजारा भत्ता की राशि और भुगतान की आवृत्ति से संबंधित कोर्ट के आदेश का पालन करें।
  2. यदि आपकी आर्थिक या व्यक्तिगत स्थिति में ऐसा बदलाव आता है जो भुगतान को प्रभावित करता है, तो कोर्ट को सूचित करें और संशोधन का अनुरोध करें।
  3. कोर्ट को अपनी आय और वित्तीय स्थिति के बारे में सटीक और पूरी जानकारी दें।
  4. गुजारा भत्ता देने से बचने या उसमें जानबूझकर देरी करने की कोशिश न करें।
  5. यदि आप कोर्ट के आदेश के अनुसार गुजारा भत्ता का भुगतान नहीं करते हैं, तो आपके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।
  6. कोर्ट के आदेश के अनुसार आपको बच्चों के रखरखाव और शिक्षा का प्रबंध करना होगा।
  7. यदि आप पुनर्विवाह करते हैं या किसी नए रिश्ते में प्रवेश करते हैं, तो यह आपकी गुजारा भत्ता देयता को प्रभावित कर सकता है।

निष्कर्ष

तलाक में गुजारा भत्ता की राशि अलग-अलग परिस्थितियों और कानूनी कारकों के आधार पर तय की जाती है। भारत में गुजारा भत्ता के नियम पारिवारिक कानूनों द्वारा नियंत्रित होते हैं और यह लिंग-तटस्थ बनाए गए हैं। हालांकि, भारतीय कानून आमतौर पर महिलाओं की सुरक्षा को प्राथमिकता देता है।

यदि आप अपनी स्थिति के अनुसार गुजारा भत्ता से संबंधित नियमों को बेहतर तरीके से समझना चाहते हैं, तो किसी अनुभवी तलाक वकील से सलाह लेना आपकी सहायता कर सकता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. क्या पति को तब भी गुजारा भत्ता देनी होती है जब पत्नी कमा रही हो?

कोर्ट पति-पत्नी की कमाई और जीवनशैली की तुलना करती है। यदि पत्नी अपनी जीवनशैली को बनाए रखने के लिए पर्याप्त कमा रही है, तो उसे गुजारा भत्ता नहीं मिलेगी।

2. क्या पत्नी के दोबारा शादी करने पर भी पति को गुजारा भत्ता देनी पड़ती है?

पति कोर्ट से गुजारा भत्ता बंद करने की अर्जी दे सकता है। हालांकि, बच्चों की शिक्षा और देखभाल के लिए उसे भुगतान जारी रखना पड़ सकता है।

3. क्या पत्नी के कमा रहे होने पर भी पति को गुजारा भत्ता देनी पड़ती है?

यदि पत्नी की आय उसकी जरूरतों को पूरा करती है, तो कोर्ट उसे गुजारा भत्ता नहीं देगी। लेकिन अगर पति की आय कम है, तो वह पत्नी से गुजारा भत्ता की मांग कर सकता है (हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत)।

4. भारत में गुजारा भत्ता पाने के लिए विवाह की कितनी अवधि होनी चाहिए?

गुजारा भत्ता के लिए कोई निश्चित विवाह अवधि नहीं है। कोर्ट हर मामले की परिस्थितियों को देखकर फैसला करती है। लंबे समय तक चले विवाहों में गुजारा भत्ता मिलने की संभावना अधिक होती है।

5. क्या महिला के पुनर्विवाह करने पर भी पति को गुजारा भत्ता देनी होती है?

पत्नी कोर्ट से गुजारा भत्ता कम करवाने या बंद करवाने की मांग कर सकती है। हालांकि बच्चों के लिए दी जाने वाली गुजारा भत्ता जारी रह सकती है।

6. अगर गुजारा भत्ता देने वाला व्यक्ति भुगतान नहीं करता तो क्या होता है?

यदि गुजारा भत्ता देने वाला व्यक्ति भुगतान में विफल रहता है, तो कोर्ट वेतन में से कटौती या संपत्ति पर जब्ती का आदेश दे सकता है। उसे अदालत की अवमानना का भी सामना करना पड़ सकता है।

7. क्या मैं एक बार में पूरी गुजारा भत्ता की मांग कर सकता/सकती हूं?

हां, यदि प्राप्तकर्ता की आवश्यकता हो, तो गुजारा भत्ता एकमुश्त राशि के रूप में ली जा सकती है या मासिक/त्रैमासिक किस्तों में।

8. क्या भारत में गुजारा भत्ता पर टैक्स लगता है?

भारत में, गुजारा भत्ता को "अन्य स्रोतों से आय" के रूप में गिना जा सकता है और यह प्राप्तकर्ता के लिए कर योग्य हो सकती है। हालांकि एकमुश्त भुगतान के मामलों में अलग कर निर्धारण होता है।

9. भारत में गुजारा भत्ता कितने समय तक चलती है?

भारत में गुजारा भत्ता की अवधि कानून द्वारा तय नहीं है। यह कोर्ट प्रत्येक मामले की परिस्थितियों के अनुसार तय करता है—जब तक पुनर्विवाह, आत्मनिर्भरता, या कोर्ट द्वारा तय कोई सीमा न आ जाए।

लेखक के बारे में

Suparna Subhash Joshi

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Adv. Suparna Joshi has been practicing law in the Pune District Court for the past 7 years, including an internship with a Senior Advocate in Pune. She began working independently after gaining substantial experience in Civil, Family, and Criminal matters. She has successfully handled cases in Pune, Mumbai, and other parts of Maharashtra. Additionally, she has assisted senior advocates in cases outside Maharashtra, including in Madhya Pradesh and Delhi.

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