Talk to a lawyer @499

भारतीय दंड संहिता

आईपीसी धारा 494 – पति या पत्नी के जीवनकाल में दोबारा विवाह करना (Marrying Again During Lifetime Of Spouse)

यह लेख इन भाषाओं में भी उपलब्ध है: English | मराठी

Feature Image for the blog - आईपीसी धारा 494 – पति या पत्नी के जीवनकाल में दोबारा विवाह करना (Marrying Again During Lifetime Of Spouse)

1. धारा 494 का कानूनी प्रावधान 2. IPC धारा 494 की सरल व्याख्या

2.1. धारा 494 के अपवाद

3. IPC धारा 494 के प्रमुख तत्व

3.1. द्विविवाह (Bigamy)

3.2. शून्य विवाह (Void Marriage)

3.3. सक्षम न्यायालय

3.4. वास्तविक तथ्यों की जानकारी

4. आईपीसी धारा 494 के प्रमुख विवरण 5. प्रमुख न्यायिक निर्णय (Case Laws)

5.1. गोपाल लाल बनाम राजस्थान राज्य (1979)

5.2. स्मृति सरला मुद्गल बनाम भारत संघ (1995)

5.3. लिली थॉमस बनाम भारत संघ (2000)

5.4. एस. निथीन बनाम केरल राज्य (2024)

6. धारा 494 के प्रवर्तन में चुनौतियाँ 7. निष्कर्ष 8. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

8.1. प्र.1: क्या IPC धारा 494 में कोई अपवाद हैं?

8.2. प्र.2: धारा 494 के संदर्भ में "शून्य विवाह" क्या होता है?

8.3. प्र.3: "वास्तविक तथ्यों की जानकारी" का क्या महत्व है?

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 494 उस स्थिति को संबोधित करती है जिसमें कोई व्यक्ति, अपने पति या पत्नी के जीवित रहते हुए, पुनः विवाह करता है। इस प्रावधान का उद्देश्य विवाह संस्था की पवित्रता की रक्षा करना और एक ही समय में एक से अधिक वैध विवाह से उत्पन्न कानूनी जटिलताओं को रोकना है।

धारा 494 का कानूनी प्रावधान

धारा 494. पति या पत्नी के जीवित रहते पुनः विवाह करना—

कोई भी व्यक्ति, जिसका पति या पत्नी जीवित है, यदि ऐसा विवाह करता है जो इस कारण शून्य (Void) है कि वह विवाह ऐसे पति या पत्नी के जीवनकाल में हुआ है, तो उसे सात वर्ष तक की सजा और जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।

अपवाद — यह धारा उन व्यक्तियों पर लागू नहीं होती: (1) जिनका पहला विवाह सक्षम न्यायालय द्वारा शून्य घोषित किया गया हो; या (2) जिनके पहले पति या पत्नी पिछले सात वर्षों से लापता हों और उस अवधि में जीवित होने की कोई जानकारी न हो — बशर्ते कि विवाह करने वाला व्यक्ति, दूसरे विवाह से पहले, अपने नए जीवनसाथी को वास्तविक स्थिति की जानकारी दे।

IPC धारा 494 की सरल व्याख्या

यदि कोई व्यक्ति, अपने पहले पति/पत्नी के जीवित रहते हुए, पुनः विवाह करता है, तो यह धारा 494 के तहत अपराध है। सजा:

  • सात वर्ष तक का कारावास
  • साथ ही जुर्माना

धारा 494 के अपवाद

इस धारा में दो मुख्य अपवाद हैं, जिनके अंतर्गत पुनः विवाह दंडनीय नहीं है:

  • न्यायालय द्वारा विवाह शून्य घोषित किया गया हो: यदि पहले विवाह को सक्षम न्यायालय द्वारा अमान्य या शून्य घोषित किया गया है।
  • पति/पत्नी का सात वर्षों से लापता होना: यदि कोई व्यक्ति सात वर्षों से अपने जीवनसाथी से कोई समाचार न पाकर विवाह करता है, तो निम्न शर्तों के अधीन यह अपराध नहीं माना जाएगा:
    • उस अवधि में जीवनसाथी के जीवित होने की कोई खबर न मिली हो।
    • दूसरे विवाह से पहले, व्यक्ति नए जीवनसाथी को वास्तविक स्थिति की जानकारी दे।

IPC धारा 494 के प्रमुख तत्व

नीचे इसके मुख्य घटकों को समझाया गया है:

द्विविवाह (Bigamy)

इस धारा का केंद्रबिंदु वही व्यक्ति है जो पहले से विवाहित होते हुए भी दूसरा विवाह करता है। यह एक अपराध है और दंडनीय है।

अधिक जानें: भारत में द्विविवाह की वैधता

शून्य विवाह (Void Marriage)

एक ऐसा विवाह जो कानून की दृष्टि में मान्य नहीं है। यदि पहले से विवाह हो और व्यक्ति दूसरा विवाह करता है, तो वह विवाह "शून्य" माना जाएगा।

शून्य और अपूर्ण विवाहों के बारे में जानें

सक्षम न्यायालय

ऐसा न्यायालय जो किसी विवाह को वैध या अमान्य घोषित करने का अधिकार रखता है। यदि अदालत पहले विवाह को शून्य घोषित कर दे, तो धारा 494 लागू नहीं होती।

वास्तविक तथ्यों की जानकारी

यदि पूर्व पति या पत्नी सात वर्षों से लापता है, तो नया विवाह करने से पहले उस स्थिति की सच्चाई नए जीवनसाथी को बताना अनिवार्य है।

आईपीसी धारा 494 के प्रमुख विवरण

अपराध

पति या पत्नी के जीवित रहते हुए पुनः विवाह करना

दंड

सात वर्ष तक का कारावास (साधारण या कठोर), और साथ ही जुर्माना

संज्ञेयता

ग़ैर-संज्ञेय

जमानत

जमानती

विचारणीय न्यायालय

प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट

समझौता योग्य अपराध

विवाह करने वाले व्यक्ति के पति या पत्नी द्वारा, न्यायालय की अनुमति से समझौता योग्य

प्रमुख न्यायिक निर्णय (Case Laws)

धारा 494 से संबंधित कुछ प्रमुख निर्णय निम्नलिखित हैं:

गोपाल लाल बनाम राजस्थान राज्य (1979)

न्यायालय ने धारा 494 के लिए निम्नलिखित आवश्यक तत्व स्पष्ट किए:

  • पहला विवाह होना आवश्यक है।
  • दूसरा विवाह उस समय हुआ हो जब पहला विवाह अभी भी अस्तित्व में हो।
  • दोनों विवाह विधिक रूप से वैध हों, अर्थात आवश्यक धार्मिक/कानूनी रस्में पूरी की गई हों।
  • दूसरा विवाह इस कारण शून्य हो कि वह पहले विवाह के दौरान हुआ।

स्मृति सरला मुद्गल बनाम भारत संघ (1995)

न्यायालय ने कहा कि हिंदू पति द्वारा इस्लाम अपनाकर दूसरा विवाह करना धारा 494 के तहत शून्य है। चूंकि पहला विवाह हिंदू कानून के अनुसार भंग नहीं हुआ था, इसलिए दूसरा विवाह द्विविवाह माना जाएगा।

लिली थॉमस बनाम भारत संघ (2000)

धारा 494 के तहत अपराध सिद्ध करने के लिए आवश्यक तत्व:

  • पहला वैध विवाह
  • दूसरा विवाह
  • पहला पति/पत्नी जीवित होना
  • दूसरा विवाह पहले विवाह की उपस्थिति में होने के कारण शून्य हो

यदि कोई व्यक्ति धर्म परिवर्तन कर दूसरा विवाह करता है, तब भी धारा 494 के तहत उसे दोषी ठहराया जा सकता है।

न्यायालय ने यह भी कहा कि जब तक पहला विवाह विधिवत रूप से भंग नहीं होता, तब तक वह मान्य रहेगा, भले ही धर्म बदला जाए।

एस. निथीन बनाम केरल राज्य (2024)

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि धारा 494 के तहत केवल वही व्यक्ति दोषी हो सकता है जो दूसरा विवाह करता है।

धारा 494 के प्रवर्तन में चुनौतियाँ

निम्नलिखित मुख्य चुनौतियाँ सामने आती हैं:

  • दूसरे विवाह का प्रमाण: सजा देने के लिए यह सिद्ध करना जरूरी है कि दूसरा विवाह धार्मिक या कानूनी विधियों के अनुसार सम्पन्न हुआ।
  • जानकारी और सहमति: कानून के अनुसार नए जीवनसाथी को पहले विवाह की स्थिति की जानकारी देना आवश्यक है, परंतु धोखे की स्थिति में यह जटिल हो जाता है।
  • व्यक्तिगत धार्मिक कानूनों का टकराव: विभिन्न धर्मों के कानून इस धारा को समान रूप से लागू करने में कठिनाई उत्पन्न कर सकते हैं।

निष्कर्ष

धारा 494 विवाह संस्था की मर्यादा बनाए रखने और द्विविवाह को रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रावधान है। इसमें कुछ अपवाद जरूर हैं, लेकिन मूल सिद्धांत यही है कि यदि पति या पत्नी जीवित है और विवाह विधिक रूप से समाप्त नहीं हुआ है, तो दूसरा विवाह अपराध है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

IPC की धारा 494 से संबंधित सामान्य प्रश्न:

प्र.1: क्या IPC धारा 494 में कोई अपवाद हैं?

हाँ, दो अपवाद हैं: (1) यदि पहला विवाह सक्षम न्यायालय द्वारा शून्य घोषित किया गया हो; (2) यदि पति/पत्नी पिछले 7 वर्षों से लापता हो और इस स्थिति की जानकारी नए जीवनसाथी को दी गई हो।

प्र.2: धारा 494 के संदर्भ में "शून्य विवाह" क्या होता है?

शून्य विवाह वह होता है जो कानूनी रूप से शुरुआत से ही अमान्य होता है। ऐसे विवाह को द्विविवाह के मामलों में गिना नहीं जाता।

प्र.3: "वास्तविक तथ्यों की जानकारी" का क्या महत्व है?

यदि पहला जीवनसाथी 7 वर्षों से लापता है, तो नया विवाह करने से पहले यह स्थिति स्पष्ट रूप से दूसरे व्यक्ति को बतानी होती है, तभी अपवाद लागू होता है।

अपनी पसंदीदा भाषा में यह लेख पढ़ें: