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बॉम्बे ने तलोजा सेंट्रल जेल में पुस्तकों की अपर्याप्त संख्या पर निराशा व्यक्त की

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बॉम्बे हाई कोर्ट ने हाल ही में कहा कि जेलों में सिर्फ़ दीवारें, सलाखें और पहरेदार ही नहीं होते। कोर्ट ने तलोजा सेंट्रल जेल में किताबों की अपर्याप्त संख्या पर निराशा जताई।

न्यायमूर्ति सुनील शुक्रे और न्यायमूर्ति जी.ए. सनप की पीठ ने कहा कि पुस्तकालय में केवल 2,850 पुस्तकें हैं, जबकि जेल में लगभग 3,000 कैदी हैं।

न्यायमूर्ति शुक्रे ने कहा, "जेल के कैदियों के लिए पुस्तकालय महत्वपूर्ण हैं। 2800 पुस्तकें कुछ भी नहीं हैं। यहां तक कि एक माध्यमिक विद्यालय में भी इससे अधिक पुस्तकें होंगी।"

पीठ 2018 भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी गौतम नवलखा की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें तलोजा जेल से स्थानांतरित कर घर में नजरबंद रखने की मांग की गई थी। उन्होंने पहले अदालत को बताया कि पीजी वोडहाउस की एक किताब उन्हें व्यक्तिगत रूप से दी गई थी, लेकिन जेल ने उसे दो बार लौटा दिया।

बेंच ने पूछा कि क्या जेल में पीजी वोडहाउस या मराठी हास्य लेखक पीएल देशपांडे की कोई और किताब है। इस पर अतिरिक्त सरकारी वकील संगीता शिंदे ने बताया कि जेल में वोडहाउस नहीं है। जस्टिस शुक्रे ने चुटकी लेते हुए कहा, "क्यों, जेल से हास्य गायब है?"

शिंदे ने आगे बताया कि जेल में लगभग 2850 पुस्तकें हैं।

जब पीठ ने टिप्पणी की कि यह संख्या बहुत कम है, तो अतिरिक्त लोक अभियोजक ने यह कहते हुए इसे उचित ठहराया कि “हर कोई नहीं पढ़ता है।”