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मद्रास हाईकोर्ट ने कहा, मंदिर के पुजारियों की नियुक्ति में जाति निर्णायक कारक नहीं होनी चाहिए

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हाल ही में एक फैसले में मद्रास उच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि मंदिर के पुजारियों की नियुक्ति में जाति कोई निर्णायक कारक नहीं होनी चाहिए। न्यायमूर्ति एन आनंद वेंकटेश ने इस बात पर प्रकाश डाला कि तमिलनाडु के मंदिरों में अर्चागर (पुजारी) बनने के लिए प्राथमिक मानदंड संबंधित मंदिर के विशिष्ट आगमिक सिद्धांतों की गहरी समझ और मंदिर के अनुष्ठानों को करने में पर्याप्त प्रशिक्षण होना चाहिए।

उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी 2018 में दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए की, जिसमें तमिलनाडु के सलेम जिले में श्री सुगवनेश्वर स्वामी मंदिर के कार्यकारी अधिकारी (ईओ) द्वारा जारी अधिसूचना को चुनौती दी गई थी। अधिसूचना में अर्चागर या स्थानीगर (मंदिर के पुजारी) के पद को भरने के लिए आवेदन मांगे गए थे।

याचिकाकर्ता ने दलील दी कि मंदिर के पुजारियों का पद विरासत में मिलना चाहिए, क्योंकि मंदिर में उनकी सेवा लंबे समय से चली आ रही है और यह स्थापित रीति-रिवाजों और उत्तराधिकार पर आधारित है। हालांकि, उच्च न्यायालय ने माना कि सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि मंदिर के पुजारी की नियुक्ति एक धर्मनिरपेक्ष मामला है और इसलिए ऐसी नियुक्तियों के लिए वंशानुगत अधिकारों का दावा नहीं किया जा सकता।

परिणामस्वरूप, न्यायालय ने कार्यकारी अधिकारी (ईओ) को उचित प्रक्रियाओं का पालन करते हुए अर्चागर की नियुक्ति के लिए नया विज्ञापन जारी करने का निर्देश दिया। साथ ही, न्यायालय ने याचिकाकर्ता को चयन प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति भी प्रदान की।