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नागरिक तब भी विरोध कर सकते हैं, जब वही शिकायत न्यायालय में लंबित हो

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आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा कि नागरिकों को संवैधानिक न्यायालय में पहले से लंबित किसी मुद्दे पर विरोध करने का अधिकार है। शिकायतों के निवारण के लिए संवैधानिक न्यायालय का दरवाजा खटखटाने से नागरिकों के उस मुद्दे पर विरोध करने के अधिकार को नहीं छीना जा सकता।

याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय के समक्ष एक रिट याचिका दायर कर संशोधित वेतनमान प्रदान करने वाली सरकारी अधिसूचना को अवैध और मनमाना बताते हुए उसे रद्द करने की मांग की थी, तथा इसे आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2014 और भारत के संविधान के विपरीत बताया था।

महाधिवक्ता ने तर्क दिया कि जब न्यायालय पहले से ही एक सरकारी कर्मचारी द्वारा दायर रिट याचिका के माध्यम से मामले की सुनवाई कर रहा है, तो कर्मचारियों का हड़ताल पर जाना उचित नहीं है, क्योंकि इससे राज्य की प्रशासनिक मशीनरी ठप्प हो सकती है।

महाधिवक्ता ने आगे कहा कि संविधान का अनुच्छेद 19(1)(ए) सभी नागरिकों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है, लेकिन ऐसा अधिकार पूर्ण नहीं है।

न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति बी.एस. भानुमति की खंडपीठ ने निर्देश दिया कि इस मामले को उचित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए, लेकिन इस बात पर भी जोर दिया कि नागरिकों को विरोध करने के अधिकार का प्रयोग करने का अधिकार होगा, भले ही कोई मुद्दा पहले से ही न्यायालय के समक्ष लंबित हो।