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कॉलेजों को उस छात्र से पूरे कोर्स की फीस मांगने का कोई अधिकार नहीं है जिसने अपना आवेदन वापस ले लिया हो - कर्नाटक हाईकोर्ट

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कर्नाटक उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक मेडिकल कॉलेज को निर्देश दिया कि वह स्नातकोत्तर कार्यक्रम से अपना प्रवेश वापस लेने वाले छात्र से 3 साल के पूरे कोर्स की फीस न मांगे। न्यायालय ने आगे कहा कि कॉलेज को पूरे कोर्स की फीस मांगने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।

न्यायमूर्ति आलोक अराधे और न्यायमूर्ति एमजीएस कमल की खंडपीठ ने राजराजेश्वरी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल को आदेश दिया कि वे याचिकाकर्ता पर तीन साल के पाठ्यक्रम की कुल फीस 25,32,000 रुपये न थोपें और उसे उसके दस्तावेज लौटाने के निर्देश दिए।

एमबीबीएस कोर्स के बाद याचिकाकर्ता ने 2018 में पोस्ट ग्रेजुएट नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट दिया। उसे प्रतिवादी कॉलेज में सीट मिल गई, जिसके लिए याचिकाकर्ता ने ₹7,74,500 और अपने सभी मूल दस्तावेज जमा करवाए। राशि जमा करवाने के बाद उसे लुधियाना के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज में एमएस ऑर्थोपेडिक्स में दाखिला मिल गया। इसलिए उसने प्रतिवादी के कॉलेज में अपनी सीट छोड़ दी और जमा करवाए गए सभी दस्तावेज वापस करने का अनुरोध किया। और याचिकाकर्ता ने कोर्स शुरू होने से पहले अपनी सीट सरेंडर कर दी। अपनी सीट सरेंडर करने के बाद प्रतिवादी ने उसे पूरे तीन साल के प्रोग्राम की फीस ₹25,32,000 जमा करवाने को कहा, जिसके बिना वे उसके मूल दस्तावेज वापस नहीं करेंगे।

कॉलेज की ओर से पेश हुए अधिवक्ता चंद्रकांत आर गौरले ने दलील दी कि अगर मूल दस्तावेज लौटा दिए गए तो कॉलेज याचिकाकर्ता से पूरा कोर्स शुल्क वसूल नहीं कर पाएगा। उसने कोर्स से नाम वापस ले लिया और कॉलेज को किसी अन्य व्यक्ति को दाखिला देने से वंचित कर दिया।

न्यायालय ने कॉलेज द्वारा दिए गए तर्कों को स्वीकार नहीं किया, जिसमें कहा गया था कि याचिकाकर्ता ने काउंसलिंग की अंतिम तिथि से पहले ही कोर्स छोड़ दिया था। इसके अलावा, इस्लामिक एकेडमी ऑफ एजुकेशन और अन्य में शीर्ष न्यायालय द्वारा दिए गए निष्कर्षों के अनुसार, संस्थानों को कार्यक्रम छोड़ने वाले छात्रों से पूरे कोर्स की फीस मांगने का कानूनी अधिकार नहीं है।

24 सितंबर, 2019 को न्यायालय ने याचिकाकर्ता का मामला निपटा दिया और संस्था को उसके मूल दस्तावेज वापस करने का निर्देश दिया।


लेखक: पपीहा घोषाल