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दिल्ली हाईकोर्ट ने सहारा को नई जमाराशि स्वीकार करने से रोका

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दिल्ली उच्च न्यायालय ने बहु-राज्यीय सहकारी समितियों के केंद्रीय रजिस्ट्रार को सहारा समूह की समितियों के खिलाफ निवेशकों द्वारा दायर शिकायतों की वास्तविकता की जांच करने और दो सप्ताह के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

शिकायतकर्ताओं ने दावा किया कि मैच्योरिटी के बाद भी उन्हें अपना पैसा नहीं मिला है। इस बीच, कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति नवीन चावला की खंडपीठ ने सहारा समूह की सोसायटियों को कोई भी नई जमाराशि स्वीकार करने से रोक दिया।

पीठ सहारा समूह द्वारा दायर याचिकाओं पर विचार कर रही थी, जिसमें केन्द्रीय रजिस्ट्रार के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उन्हें नई जमाराशि लेने तथा मौजूदा सदस्यों के निवेश को नवीनीकृत करने से रोका गया था।

जनवरी 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगा दी थी, लेकिन निवेशक होने का दावा करने वाले लोगों ने सैकड़ों याचिकाएं दायर कीं। इन याचिकाओं में आरोप लगाया गया कि भले ही उनके निवेश की अवधि पूरी हो गई हो, लेकिन उन्हें अभी तक परिपक्व राशि नहीं मिली है।

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ने पीठ को बताया कि इन सोसाइटियों में करीब सात से दस करोड़ लोगों ने निवेश किया है और उनमें से हजारों लोगों ने शिकायत की है कि उनका पैसा नहीं चुकाया जा रहा है। एएसजी ने आगे बताया कि निवेशकों के 60,000 करोड़ रुपये से अधिक निकाल कर एम्बी वैली प्रोजेक्ट में निवेश कर दिए गए। इसके अलावा, समूह के प्रमोटर सुब्रत रॉय की जमानत सुरक्षित करने के लिए इन सोसाइटियों से 2,000 करोड़ रुपये भी निकाले गए।

सहारा समूह की ओर से पेश हुए अधिवक्ता एसबी उपाध्याय ने कहा कि शिकायतें कुल निवेशकों की संख्या के 0.006% से भी कम हैं। जनवरी 2021 से अब तक सोसायटियों ने अपने जमाकर्ताओं को ₹20,000 करोड़ से अधिक का भुगतान किया है। विशेष ऑडिट रिपोर्ट भी यही बताती है और इसलिए, न्यायालय से अनुरोध किया गया कि कोई रोक न लगाई जाए।

हालांकि, उच्च न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को अपनी वास्तविकता साबित करनी होगी।