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बेटियों का भरण-पोषण करना पिता का कर्तव्य है, भले ही वे कमाने वाली हों - दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि पिता का कर्तव्य है कि वह अपनी बेटियों का भरण-पोषण करे, भले ही वे वयस्क हो गई हों और नौकरीपेशा हों तथा आय अर्जित कर रही हों। न्यायमूर्ति विपिन सांघी और जसमीत सिंह की खंडपीठ ने कहा कि आय अर्जित करने और खुद का भरण-पोषण करने की क्षमता में अंतर है। एक व्यक्ति पैसा कमा सकता है, लेकिन फिर भी खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ हो सकता है।
न्यायालय तीन बच्चों की मां द्वारा दायर एक अपील पर विचार कर रहा था, जिसमें उसने तर्क दिया था कि पिछले 11 वर्षों से वह पिता की किसी भी वित्तीय सहायता के बिना अपने तीनों बच्चों का पालन-पोषण खुद ही कर रही है। यह अपील पारिवारिक न्यायालय के उस आदेश के विरुद्ध थी, जिसमें पिता को दंपत्ति के नाबालिग बेटे के लिए भरण-पोषण का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था, लेकिन 18 वर्ष से अधिक आयु की दो बेटियों के भरण-पोषण के संबंध में कोई निर्देश देने से इनकार कर दिया गया था।
पिता की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 के अनुसार भरण-पोषण केवल बेरोजगार और आश्रित बेटियों तक ही सीमित है। कोई भी कानून पिता को बेटियों और पत्नी के कमाने के बाद भरण-पोषण का भुगतान करने के लिए बाध्य नहीं करता। इस पर, न्यायालय ने जवाब दिया कि भले ही अविवाहित बेटी नौकरी करती हो, लेकिन यह नहीं माना जा सकता कि उसके पास अपने वैवाहिक खर्चों को पूरा करने के लिए संसाधन हैं।
हालांकि, इसने यह भी कहा कि वर्तमान मामले में दोनों पक्षों में से कोई भी अपनी वास्तविक आय के बारे में ईमानदार नहीं रहा है।
न्यायालय ने पिता को निर्देश दिया कि वह अपनी बड़ी बेटी को 35 लाख रुपए का भुगतान करे, जो ब्रिटेन में नौकरी करती है और रहती है। पीठ ने पिता को यह भी निर्देश दिया कि वह छोटी बेटी को 50 लाख रुपए का भुगतान करे, क्योंकि वह कोई आय अर्जित नहीं कर रही है। इसके बाद न्यायाधीशों ने अपीलों को खारिज कर दिया।
लेखक: पपीहा घोषाल