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जेजे एक्ट 2015 रिश्तेदारों से बच्चों को गोद लेने की अनुमति देता है - बॉम्बे हाईकोर्ट

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बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच के जस्टिस मनीष पिटाले की एकल पीठ ने कहा कि किशोर न्याय अधिनियम, 2015 (जेजे एक्ट) के प्रावधानों को केवल अनाथ, आत्मसमर्पण करने वाले, परित्यक्त बच्चों या कानून के साथ संघर्ष करने वाले बच्चों या देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों तक सीमित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि रिश्तेदारों और सौतेले माता-पिता से बच्चों को गोद लेना भी जेजे एक्ट में शामिल है।


जिला न्यायालय द्वारा पारित आदेश के विरुद्ध माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष वर्तमान पुनरीक्षण याचिका दायर की गई थी। यवतमाल के जिला न्यायाधीश ने इस आधार पर आवेदन को खारिज कर दिया कि वर्तमान मामले में बच्चा न तो देखभाल और संरक्षण की जरूरत वाला बच्चा है और न ही कानून या जेजे अधिनियम 2015 के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन करने वाला बच्चा है।


चूंकि वर्तमान आवेदन में कोई प्रतिवादी नहीं था, इसलिए इस न्यायालय ने श्री एफ.टी. मिर्जा को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया। श्री मिर्जा ने अधिनियम की धारा 56(2) का हवाला देते हुए कहा कि किसी रिश्तेदार से किसी अन्य रिश्तेदार द्वारा बच्चे को गोद लेना उक्त अधिनियम के प्रावधानों और प्राधिकरण द्वारा बनाए गए दत्तक ग्रहण विनियमों के अनुसार किया जा सकता है।


यह प्रस्तुत किया गया कि न्यायालय द्वारा अपनाया गया दृष्टिकोण अत्यंत संकीर्ण था, तथा इसमें जे.जे. अधिनियम, 2015 में किए गए परिवर्तनों पर विचार नहीं किया गया।

लेखक: पपीहा घोषाल