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उत्तराखंड की एक अदालत ने पत्रकार प्रशांत राही को यूएपीए के तहत 14 साल की गिरफ्तारी के बाद बरी कर दिया।

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Feature Image for the blog - उत्तराखंड की एक अदालत ने पत्रकार प्रशांत राही को यूएपीए के तहत 14 साल की गिरफ्तारी के बाद बरी कर दिया।

माओवादी होने के आरोप में पूर्व पत्रकार प्रशांत राही को हाल ही में उत्तराखंड की एक अदालत ने बरी कर दिया। पत्रकार प्रशांत राही को 2007 में गोपाल दत्त भट्ट, खीम सिंह बोरा और देवेंद्र चम्याल के साथ कथित तौर पर दंगा भड़काने और साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।

राही और अन्य तीन आरोपियों पर एक "आतंकवादी गिरोह" का हिस्सा होने का आरोप लगाया गया था और उन पर भारतीय दंड संहिता और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत आरोप लगाए गए थे।

राही को 2011 में जमानत पर रिहा किया गया था और उसके बाद 2013 में महाराष्ट्र पुलिस ने यूएपीए के तहत उन्हें गिरफ्तार किया था, साथ ही दूसरे मामले में कुछ अन्य लोगों को भी गिरफ्तार किया था। 2017 में गढ़चिरौली की एक अदालत ने उन्हें माओवादियों के साथ शामिल होने का दोषी ठहराया था। नतीजतन, राही वर्तमान में अमरावती जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं।

उधम सिंह नगर सत्र न्यायालय के न्यायाधीश प्रेम सिंह खिमाल ने कहा कि अभियोजन पक्ष राही और अन्य तीन आरोपियों के अपराधों को उचित संदेह से परे साबित करने में विफल रहा।

न्यायालय ने पाया कि पुलिस स्थानीय गवाहों की पुष्टि करने में विफल रही। पुलिस राही से 'प्रतिबंधित साहित्य' पेश करने में भी विफल रही, क्योंकि उसके कब्जे से जब्त की गई कोई भी पुस्तक प्रतिबंधित वस्तुओं की सूची में नहीं थी। न्यायालय ने कहा कि उत्तराखंड पुलिस ने प्रक्रिया में कई खामियां की हैं, जिसमें पहचान परेड कराने में विफलता और यूएपीए के तहत आरोपियों पर मुकदमा चलाने के लिए सरकार से अनुमति प्राप्त करने में विफलता शामिल है।


लेखक: पपीहा घोषाल