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संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दायर याचिका पर सीमा कानून लागू नहीं होता है, लेकिन ऐसे अधिकारों को अनुचित समय बीत जाने के बाद लागू नहीं किया जा सकता है।
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एम. चन्नबसप्पा बनाम महाप्रबंधक मामले में यह राय व्यक्त की थी कि यद्यपि संविधान के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत याचिकाओं पर परिसीमा कानून लागू नहीं होता है, तथापि ऐसे अधिकारों को अनुचित समय बीत जाने के बाद लागू नहीं किया जा सकता।
तथ्य
12-10-1988 = याचिकाकर्ता को कर्नाटक विद्युत बोर्ड (केईबी) में जूनियर इंजीनियर के रूप में नियुक्त किया गया था।
26-09-1990 = उन्हें सहायक अभियंता के पद पर पदोन्नत किया गया।
17-07-2002 = सहायक अभियंता संवर्ग में कार्य करते समय इनके विरुद्ध आरोप पत्र दाखिल किया गया तथा तत्पश्चात विभागीय जांच की गयी।
18-07-2003 = अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा 'निंदा' का दंड लगाए जाने के साथ जांच समाप्त हुई।
30-09- 2003 = उन्हें सहायक कार्यकारी अभियंता के संवर्ग में पदोन्नत किया गया, लेकिन उस पूर्वव्यापी तारीख से नहीं जिस तारीख को उनके कनिष्ठों को पदोन्नत किया गया था।
2012 = याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय से यह निर्देश देने की मांग की कि उसे उसी तिथि से पदोन्नत किया जाए जिस तिथि को उसके कनिष्ठों को पदोन्नत किया गया था।
2013 = याचिका खारिज कर दी गई।
याचिकाकर्ता ने इस याचिका के माध्यम से 2013 के आदेश को चुनौती दी है।
2020 = उक्त रिट याचिका के लंबित रहने के दौरान, याचिकाकर्ता ने एक अन्य याचिका दायर की, जिसमें याचिकाकर्ता ने 2003 के आदेश (निंदा का दंड) पर सवाल उठाया और प्रतिवादी को निर्देश की परिणामी राहत मांगी।
न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने कहा कि निंदा के दंड के आदेश को चुनौती देने में 17 साल की देरी हुई है। इसलिए, दंड के आदेश को चुनौती देने को उचित समय के भीतर की गई कार्यवाही नहीं माना जा सकता।
लेखक: पपीहा घोषाल