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मद्रास हाईकोर्ट ने 7 साल की नाबालिग बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या के मामले में मौत की सजा बरकरार रखी
मद्रास उच्च न्यायालय ने 7 वर्षीय बच्ची के बलात्कार और हत्या के मामले में पुदुक्कोट्टई के सत्र न्यायाधीश द्वारा दी गई मौत की सजा को बरकरार रखा। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि यदि आरोपी जैसे व्यक्ति को जीवित रहने दिया जाता है, तो वह रिहाई के कगार पर खड़े सह-कैदियों के दिमाग को प्रदूषित करेगा।
न्यायमूर्ति एस वैद्यनाथन और न्यायमूर्ति जी जयचंद्रन की खंडपीठ अनुसूचित जाति समुदाय की 7 वर्षीय बच्ची की हत्या से संबंधित मामले की सुनवाई कर रही थी। नाबालिग बच्ची की यौन उत्पीड़न के बाद हत्या कर दी गई थी। आरोपी ने बच्ची से दोस्ती की और उसके साथ बलात्कार किया। इस डर से कि बच्ची सभी को इस हमले के बारे में बता देगी, आरोपी ने बच्ची का सिर पेड़ से कुचल दिया और नाबालिग बच्ची के शव को सूखे तालाब में फेंक दिया।
इसी के मद्देनजर ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को फांसी की सजा सुनाई। यह आदेश पुष्टि के लिए हाईकोर्ट के समक्ष आया।
अभियुक्त ने तर्क दिया कि मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य और संदेह पर आधारित था। ट्रायल कोर्ट ने परिस्थितियों की श्रृंखला में किसी भी तरह के व्यवधान पर विचार नहीं किया। आगे कहा गया कि अभियुक्त को संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए, क्योंकि गवाह अभियोजन पक्ष के मामले को पूरी तरह से साबित करने में विफल रहे। डिवीजन बेंच ने अभियुक्त से पूरी तरह असहमत होते हुए कहा कि गवाही ठोस थी और मामूली विसंगतियां मामले के लिए घातक नहीं होंगी।
साक्ष्यों की जांच करने के बाद, पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि आरोपी ने अपनी प्यास बुझाने के बाद नाबालिग पर क्रूरतापूर्वक हमला किया और उसके चेहरे और गर्दन पर वार करने के लिए उसका सिर पेड़ पर पटक दिया। ट्रायल कोर्ट के फैसले ने यह साबित करने के लिए सभी आवश्यकताओं को पूरा किया कि यह दुर्लभतम मामलों में से एक था, और कोई अन्य सजा देना अपर्याप्त होगा।
निचली अदालत के फैसले की पुष्टि की गई।
लेखक: पपीहा घोषाल