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आगामी शैक्षणिक वर्ष में छात्रों के लिए भगवद् गीता की शिक्षा अनिवार्य करने के प्रस्ताव को चुनौती देते हुए गुजरात उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई।

मामला: जमीयत उलमा-ए-हिंद गुजरात बनाम भारत संघ
पीठ: मुख्य न्यायाधीश अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति आशुतोष जे शास्त्री
गुजरात उच्च न्यायालय ने राज्य और केंद्र सरकार से जनहित याचिका (पीआईएल) पर जवाब मांगा है, जिसमें राज्य के शिक्षा विभाग द्वारा आगामी शैक्षणिक वर्ष में कक्षा 6 से 12 तक के विद्यार्थियों के लिए भगवद् गीता की पढ़ाई अनिवार्य करने के प्रस्ताव को चुनौती दी गई है।
याचिकाकर्ता जमीयत उलमा-ए-हिंद के अनुसार, यह प्रस्ताव सत्ता का रंग-रूपी प्रयोग है, जो अनुच्छेद 14, 28 और अन्य मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के भी विरुद्ध है, जो संविधान की एक मूलभूत विशेषता है। याचिकाकर्ता के अनुसार, संविधान का अनुच्छेद 28 पूरी तरह से राज्य के धन से वित्तपोषित किसी भी शैक्षणिक संस्थान में धार्मिक शिक्षा को प्रतिबंधित करता है, और इसलिए, प्रस्ताव ने अनुच्छेद 28 का भी उल्लंघन किया है।
याचिकाकर्ताओं ने चिंता व्यक्त की कि छात्रों को केवल एक धर्म में शिक्षा देने से उनके दिमाग में एक धर्म की श्रेष्ठता की भावना घर कर जाएगी, जिससे संविधान के तहत गारंटीकृत स्वतंत्र विकल्प और विवेक का प्रयोग प्रभावित होगा। याचिकाकर्ता ने आगे तर्क दिया कि प्रस्ताव में एक धर्म को दूसरे धर्मों पर तरजीह दी गई है, जो संवैधानिक नैतिकता का उल्लंघन है।
जनहित याचिका में धर्मनिरपेक्ष राज्य में नैतिक मूल्यों पर जोर दिया गया तथा प्रस्ताव पर रोक लगाने की मांग की गई।
खंडपीठ ने मामले को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया और सरकार को नोटिस जारी किया, लेकिन याचिकाकर्ता की स्थगन याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।